Book Title: Bharat ki Khoj
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Osho Rajnish

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Page 14
________________ भारत की खोज बी० ए सी॰ पढ़ रहा है एक लड़का और परीक्षा के वक्त हनुमान जी के मंदिर के सामने हाथ जोड़ के खड़ा हो जाएगा । उसका बी० ए सी० का पढ़ना उसका साईंस का पढ़ना और हनुमान जी के मंदिर के सामने हाथ जोड़ में उस कोई कंट्राडीक्शन न हीं दिखाई पड़ेगा, कोई विरोध नहीं दिखाई पड़ेगा । मैं कलकत्ते में एक डाक्टर के घर में मेहमान था, वह एक बड़े फिजीशियन थे। इंग्लैं ड रहे हैं पश्चिम से डिग्रीयां ले कर आए हैं वह मुझे मटिंग में ले जाने के लिए बाह र निकले उनके पोर्च में मैं निकल ही रहा था की उनकी छोटी बच्ची को छींक आ गई। उस बड़े डाक्टर ने कहा, 'एक मिनट रुक जाइए।' मैंने कहा, 'क्यों?' उसने क हा, 'आप देखते नहीं बच्ची को छींक आ गई हैं।' मैंने कहा, 'तुम्हारी बच्ची को छ ̈क आए इससे मेरे रुकने का क्या संबंध है ? और तुम डाक्टर हो और तुम भली-भ भांति जानते हो की छींक के आने का कारण क्या होता है ? ' तुम भी यही कह रहे हो एक गांव का ग्रामीण यह कहता तो माफ किया जा सकता था तुम्हें माफ नहीं किया जा सकता । तुम्हें तो हिंदुस्तान के पास अगर किसी दिन कोई सच में अदालत होगी उसके सामने खड़ा किया जाना चाहिए और तुम्हारें सारे सट्रीफिक्ट छीन लेने चाहिए और तुम्हारी डाक्टरी को जुर्म करार दे देना चाहिए था । तुम डाक्टर नहीं हो सकते। क्योंकि जो आदमी छींक आने से रुकता है वह आदमी डाक्टर कैसे हो सकता है। लेकिन वह डाक्टर बड़े हैं, वह डाक्टरी एक तरफ है औ र उनका वह जो ग्रामीण मास्तिष्क है वह दोनों एक साथ चल रहे हैं। वह एक साथ दोनों काम चल रहा है। वह एक तरह की टैक्नोलोजी जो उन्होंने सीख ली, कि नस् तर कैसे लगाना? फलां बीमारी में फलां दवा देनी हैं वह सब उन्होंने सीख लिया है। वह तोता रटंत हैं लेकिन उनके पास साईंटीफीक माईंड नहीं। तो मुझे रोकने से पह ले वह कुछ सोचते की छीक आने से रुकने का क्या संबंध हो सकता हैं । नहीं कन यह प्रश्न उनके मन में नहीं उठा। यह प्रश्न उठा ही नहीं मुझसे कह दिया और जब मैंने प्रश्न उठा दिया तो उन्होंने कहा, 'हां आप ठीक कहते, लेकिन हा, हर्ज ही क्या है रुक भी गए तो हर्ज क्या है । क्या बिगड़ गया ?' मैंने उनसे कहा, 'बहुत कु छ बिगड़ गया, तुम्हारे रुकने का सवाल नहीं है पूरे मुल्क की प्रतिभा रुक गई हैं। तु म्हारे रुकने का सवाल नहीं, तुम तो बिलकुल रुक जाओ अब इस छींक के बाद घ र से निकलो ही मत तो कोई हर्जा नहीं हैं। लेकिन पूरे मुल्क का दिमाग अगर इस तरह सोचेगा तो इस मुल्क में कभी भी विज्ञान का जन्म नहीं हो सकता ।' मैं जालंधर में एक घर में अभी था एक मित्र ने एक बड़ा मकान बनाया। वह एक इंजीनियर हैं पंजाब के बड़े इंजीनियर बहुत अच्छा मकान बनाया । मुझसे कहा की उ नके मकान का उदघाटन कर दूं। मैं गया उनका फीता काटा देखा की नए मकान में सामने एक हांड्डी लटकी है काली और हांड्डी के ऊपर बाल वगैरहा लगे हुए हैं और आदमी का चेहरा बना हुआ । मैंने पूछा यह क्या है, उन्होंने कहा कि, 'मकान को नजर न लग जाए इसलिए लटकानी पड़ती हैं।' अब यह आदमी इंजीनियर है, यह Page 14 of 150 http://www.oshoworld.com

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