Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 01
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy
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(१८)
भारत-भैषज्य-रत्नाकर
चीता, निशोत, त्रिफला, दन्ती, काला नमक, अजमोद (अजवायन), बच, कूठ, अम्लवेत, सब चीजें समान भाग और सबके बराबर सैंधा | सैंधानमक, सज्जीखार, हैड़, त्रिकुटा, ब्रह्मदण्डी, नमक लेकर चूर्ण करके थोहर के दूधकी भावना नागरमोथा, हुलहुल, सौंठ और बिडलवण । यह दे फिर थोहर के मोटे डंडे को भीतरसे खोखला | चूर्ण तक के साथ पीनेसे सब प्रकार के शूलोंका करके बीचमें इसे भरदे, इस स्नुही कांड को | नाश होता है। मिट्टी से लेप करके अग्नि में दग्ध करे फिर चूर्ण [११] अजमोदादि चूर्णम् (४) बना कर रक्खे । इसे तक के साथ पीनेसे तिल्ली, (वृ० नि० र० भा० ५ । शू०) जिगर और उदर रोगों का नाश होता है तथा | अजमोदाभयापाठा त्रिकटुः सम चूर्णकम् ॥ अग्नि दीप्त होती है।
भुक्तमुष्णांमसाऽजीर्ण शूलनिमूलनं क्षणात् ॥ [४८] अजमोदादि चूर्णम् (१)
अजवायन, हैड, पाठा, त्रिकुटा, सब चीजोंको (वृ० नि० २०, वृ० यो० त०, स्व० भ०)
समान भाग चूर्ण करके गरम पानी के साथ खाने से अजमोदां निशां धात्रीं क्षारं वन्हि विचूर्णयेत्।
| अजीर्णका नाश होता है और शूल तो क्षण भरमें मधुसपिर्युतं लीढं त्रिदोषस्वरभंगनुत् ॥ अजमोद (अजवायन), हल्दी, आमला, यव- |
निर्मूल हो जाता है। क्षार, और चीता, इनका चूर्ण मधु और घी के साथ |
[१२] अजमोदादि चूर्णम् (५) चाटने से त्रिदोषज स्वर-भंग का नाश होता है। . (शा० ध०, म० खं० अ. ६, यो० चि०)
[४९] अजमोदादि चूर्णम् (२) अजमोदा विडंगानि सैन्धवं देवदारु च । (शा० ध०, म० ख० अ० ६, वृ० मा०, यो० चित्रकः पिप्पलीमूलं शतपुष्पा च पिप्पली ॥ र० । अति०)
मरिचं चेति कपाशं प्रत्येकं कारेयद् बुधः । अजमोदा मोचरसं सशृङ्गवेरं सधातकीकुसुमम्। कर्षास्तु पंच पथ्याया दश स्युवेद्धदारकात् ॥ गोदधिमथितयुक्तं गङ्गामपि वाहिनीं मध्यात नागराच्च दशैव स्युः सर्वाण्येकत्र चूर्णयेत । - अजमोद (अजवायन), मोचरस, सोंठ और | पिवेत्कोष्णजलेनैव चूर्ण श्वयथुनाशनम् ॥ धायके फूल । इनका चूर्ण बनाकर गायक तक के | आमवातरुजं हन्ति सन्धिपीडां च गृध्रसीम् । साथ पीने से प्रबल अतिसार का नाश होता है। | कटीपृष्ठगुदस्थां च जंघयोश्च रुजं जयेत् ॥ [५०] अजमोवादि चूर्णम् (३) तूनीप्रतूनींविश्वाचीकफवातामयाञ्जयेत् ।
(वृ० नि० । भा० ५ शू०) समेन वा गुडेनास्य वटकान्कारयेत् भिषक् ।। अजमोदा वचा कुष्ठमम्लवेतससैन्धवम् । ____ अजमोद, बिडंग, सैंधा नमक, देवदारु, सर्जिक्षार तथा पथ्या त्रिकटु ब्रह्मदंडिका ॥ चीता, पीपलामूल, सोया, पीपल और काली मिर्च । मुस्ता सुवर्चला विश्वा लवणं विडपूर्वकम् । प्रत्येक १। तोला; हैड़ ६। तोला, विधारा १२॥ पीतं तक्रान्विते पूर्णममीपां सर्वशूलहृत् ॥ । तोला, सोंठ १२॥ तोला । सबका चूर्ण बनाकर
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