________________
व्यक्ति की आवश्यकताएँ भी बढ़ीं। तब कर्मभूमि का जन्म हुआ। भगवतीसूत्र में इन 15 कर्मभूमियों का उल्लेख हुआ है- पाँच भरत, पाँच ऐरावत और पाँच महाविदेह। कर्मभूमि के जन्म के साथ ही 'कुलकर' व्यवस्था प्रारम्भ हुई। इस व्यवस्था में क्रमशः 14 कुलकर या मनु उत्पन्न हुए, उन्होंने ही भोजन बनाना, खेती करना, जंगली पशुओं से रक्षा के उपाय, मकान बनाना तथा समाज के मूलभूत अनुशासन के लिए नियम आदि सिखाए। इस अवसर्पिणी काल में होने वाले सात कुलकरों के उल्लेख भगवतीसूत्र में इस प्रकार मिलते हैं- (1) विमलवाहन (2) चक्षुषमान (3) यशस्वान् (4) अभिचन्द्र (5) प्रसेनजित (6) मरुदेव (7) नाभि। इस कुलकर परम्परा के अन्तिम कुलकर 'नाभिराय' थे। उनकी पत्नी का नाम मरुदेवी था। इन्हीं के पुत्र ऋषभदेव थे, जो वास्तविक कर्मभूमि के प्रारंभक माने जाते हैं। डॉ. जेकोबी ने भी जैन धर्म का प्रारंभ ऋषभदेव से हुआ, इसमें सत्य की संभावना मानी है। डॉ. राधाकृष्णन् ने यजुर्वेद' में ऋषभदेव, अजितनाथ
और अरिष्टनेमि के उल्लेख को स्वीकार किया है। भागवतपुराण के पाँचवें स्कंध के प्रथम छः अध्यायों में ऋषभदेव के वंश, जीवन, तपश्चरण का वृत्तांत मिलता है तथा उनका अवतार रजोगुण से भरे हुए लोगों को कैवल्य की शिक्षा देने के लिए हुआ यह माना गया है।
22वें तीर्थंकर अरिष्टनेमि का उल्लेख जैन ग्रंथों के साथ-साथ ऋग्वेदी, महाभारत' आदि में पाया जाता है। अरिष्टनेमि श्रीकृष्ण के चचेरे भाई थे। विवाह के समय भोज में दी जाने वाली पशु बलि की घटना से विरक्त होकर वे संन्यासी बन गये और निर्ग्रन्थ साधना में लीन हो गये।
पार्श्वनाथ जैन परम्परा के 23वें तीर्थंकर थे। जैन पुराणों के अनुसार पार्श्वनाथ का निर्वाण तीर्थंकर महावीर के निर्वाण से 250 वर्ष पूर्व हुआ था। आचारांग' में उल्लेख है कि महावीर के माता-पिता पार्श्व-परम्परा का पालन करते थे। पार्श्वनाथ को चातुर्याम धर्म के प्रवर्तक के रूप में स्वीकार किया गया है। उत्तराध्ययनसूत्र12 व भगवतीसूत्र में पार्श्वनाथ के शिष्यों व महावीर के शिष्य गौतम के परिसंवाद का विस्तृत वर्णन प्राप्त होता है। डॉ. हर्मन जेकोबी'' ने पार्श्व को ऐतिहासिक माना है। डॉ० विमलचरण लॉ के अनुसार भगवान् पार्श्व के धर्म का प्रचार भारत के उत्तरवर्ती क्षत्रियों में था। वैशाली उनका मुख्य केन्द्र था। डॉ. हीरालाल जैन ने पार्श्व-परम्परा के स्थविर तथा निर्ग्रन्थ श्रावकों के अनेक उल्लेखों को स्वीकार किया
भगवतीसूत्र का दार्शनिक परिशीलन