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( १० ) शरीर स्थिर रहता है, तभी तक आत्मा की स्थिरता है, शरीर का नाश होने पर आत्मा का भी नाश हो जाता है। ___ बौद्धों के दीघनिकायान्तर्गत पायासी सुत्त में और जैनों के रायपसेणइय सुत्त में उन प्रयोगों का समान रूप से विस्तृत वर्णन है जिन्हें नास्तिक राजा पायासी-पएसी ने 'जीव शरीर से पृथक् नहीं है' इस बात को सिद्ध करने के लिए किये थे। उनसे पता चलता है कि उसने मरने वालों से कहा हुआ था कि तुम मर कर जिस लोक में जाओ, वहाँ से मुझे समाचार बताने के लिए अवश्य
आना। किन्तु उनमें से एक भी व्यक्ति उसे मृत्यूपरान्त की स्थिति के विषय में समाचार देने नहीं आया। अतः उसे यह विश्वास हो गया कि मृत्यु के समय ही आत्मा का नाश हो जाता है, शरीर से भिन्न प्रात्मा नामक कोई पदार्थ नहीं है । 'शरीर ही आत्मा है' इस बात को प्रमाणित करने के उद्देश्य से राजा ने जीवित मनुष्य को लोहे की पेटी में अथवा हांडी में बन्द करके यह देखने का प्रयत्न किया कि मृत्यु के समय उसका जीव बाहर निकलता है या नहीं। परीक्षण के अन्त में उसने निश्चय किया कि मृत्यु के समय शरीर से कोई जीव बाहर नहीं निकलता। जीवित और मृत व्यक्ति को तोल कर उस ने यह परीक्षा भी की कि यदि मृत्यु के समय जीव चला जाता हो तो वजन में कमी हो जानी चाहिए। किन्तु ऐसा नहीं हुआ, प्रत्युत इसके विपरीत उसे यह पता चला कि मृत व्यक्ति का वज़न बढ़ जाता है। मनुष्य के शरीर के टुकड़े टुकड़े कर क्रमशः हड्डियों, माँस आदि में जीव की खोज की, किन्तु वह उनमें भी नहीं मिला। इसके अतिरिक्त राजा यह युक्ति दिया करता था कि यदि शरीर और जीव अलग २ हैं तो क्या कारण है कि एक बालक अनेक बाण नहीं चला सकता और एक युवक
'सूत्रकृतांग २.१.९; २.१.१०
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