Book Title: Atmamimansa
Author(s): Dalsukh Malvania
Publisher: Jain Sanskruti Sanshodhan Mandal Banaras

View full book text
Previous | Next

Page 143
________________ ३--परलोक विचार परलोक का अर्थ है मृत्यु के बाद का लोक । मृत्यूपरान्त जीव की जो विविध गतियाँ होती हैं, उनमें देव, प्रेत, और नारक ये तीनों अप्रत्यक्ष हैं। अतः सामान्यतः परलोक की चर्चा में इन पर ही विशेष विचार किया जाएगा। वैदिकों, जैनों और बौद्धों की देव, प्रेत एवं नारकियों संबंधी कल्पनाओं का यहाँ उल्लेख किया जाएगा। और तिर्यंच योनियां तो सब को प्रत्यक्ष हैं, अतः इनके विषय में विशेष विचार करने की आवश्यकता नहीं रहती। भिन्न भिन्न परंपराओं में इस संबंध में जो वर्गीकरण किया गया है, वह भी ज्ञातव्य तो हैं, किन्तु यहाँ उसकी चर्चा अप्रासंगिक होने के कारण नहीं की गई। कर्म और परलोक-विचार ये दोनों परस्पर इस प्रकार संबद्ध हैं कि एक के अभाव में दूसरे की संभावना नहीं। जब तक कर्म का अर्थ केवल प्रत्यक्ष क्रिया ही किया जाता था, तब तक उसका फल भी प्रत्यक्ष ही समझा जाता था। किसी ने कपड़े सीने का कार्य किया और उसे उसके फलस्वरूप सिला हुआ कपड़ा मिल गया। किसी ने भोजन बनाने का काम किया और उसे रसोई तय्यार मिली। इस प्रकार यह स्वाभाविक है कि प्रत्यक्ष क्रिया का फल साक्षात् और तत्काल माना जाए। किंतु एक समय ऐसा आया कि मनुष्य ने देखा कि उसकी सभी क्रियाओं का फल साक्षात् नहीं मिलता और नहीं तत्काल प्राप्त होता है। किसान खेती करता है, परिश्रम भी करता है, किन्तु यदि ठीक समय पर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162