Book Title: Atmamimansa
Author(s): Dalsukh Malvania
Publisher: Jain Sanskruti Sanshodhan Mandal Banaras

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Page 161
________________ ( १५२ ) नाग कुमार, विद्युत् कुमार, सुपर्ण कुमार, अग्नि कुमार, वात कुमार, स्तनित कुमार, उदधि कुमार, द्वीप कुमार और दिक कुमार । व्यंतरनिकाय के देवों के आठ प्रकार हैं-किन्नर, किंपुरुष, महोरग, गंधर्व, यक्ष, राक्षस, भूत, पिशाच ।। ___ ज्योतिष्क देवों के पांच प्रकार हैं-सूर्य, चन्द्र, ग्रह, नक्षत्र, प्रकीर्णतारा । वैमानिक देवनिकाय के दो भेद हैं-कल्पोपपन्न, कल्पातीत । कल्पोपपन्न के १२ भेद हैं-सौधर्म, ऐशान, सानत्कुमार, माहेन्द्र, ब्रह्मलोक, लान्तक, महाशुक्र, सहस्रार, आनत, प्राणत, आरण तथा अच्युत । एक मत १६ भेद' स्वीकार करता है। कल्पातीत वैमानिकों में नव ग्रैवेयक और पांच अनुत्तर विमानों का समावेश है। नव प्रैवेयक के नाम ये हैं-सुदर्शन, सुप्रतिबद्ध, मनोरम, सर्वभद्र, सुविशाल, सुमनस, सौमनस, प्रियंकर, आदित्य । पांच अनुत्तर विमानों के नाम ये हैं-विजय, वैजयन्त, जयन्त, अपराजित, सर्वार्थसिद्ध । ___ इन सब देवों की स्थिति, भोग, संपत्ति आदि के संबंध में विस्तृत वर्णन जिज्ञासुओं को तत्त्वार्थसूत्र के चतुर्थ अध्याय तथा बृहत्संग्रहणी आदि ग्रंथों में देख लेना चाहिए। जैन मत में सात नरक माने हैं-रत्नप्रभा, शर्कराप्रभा, वालुकाप्रभा, पंकप्रभा, धूमप्रभा, तमः प्रभा, महातमः प्रभा । ये सातों नरक उत्तरोत्तर नीचे नीचे हैं और विस्तार में भी अधिक हैं। उनमें दुःख ही दुःख है। नारक परस्पर तो दुःख उत्पन्न करते ही हैं। इसके अतिरिक्त संक्लिष्ट असुर भी प्रथम तीन नरक भूमियों में दुःख देते हैं। नरक का विशद वर्णन तत्त्वार्थसूत्र के तीसरे अध्याय में है। जिज्ञासु वहां देख सकते हैं। १ ब्रह्मोत्तर, कापिष्ठ, शुक्र, शतार-ये चार नाम अधिक हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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