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( १५१ ) जो कुछ दिया जाता है, उसी के आधार पर उनका जीवन निर्वाह होता है। इस प्रकार के विवरण पेतवत्थु में उपलब्ध होते हैं।
लोकान्तरिक नरक में भी प्रेतों का निवास है। वहां के प्रेत छे कोस ऊंचे हैं। मनुष्य लोक में निझामतण्ह जाति के प्रेत रहते हैं। इनके शरीर में सदा आग जलती है । वे सदा भ्रमणशील होते हैं। इनके अतिरिक्त पालि ग्रंथों में खुप्पिपास, कालंकजक, उतूपजीवी नाम की प्रेत जातियों का भी उल्लेख है। जैन सम्मत परलोक
जैनों ने समस्त संसारी जीवों का समावेश चार गतियों में किया है, मनुष्य, तिर्यंच, नारक तथा देव । मरने के बाद मनुष्य अपने कर्मानुसार इन चार गतियों में से किसी एक गति में भ्रमण करता है । जैन सम्मत देव तथा नरक लोक के विषय में ज्ञातन्य बातें ये हैं
जैनमत में देवों के चार निकाय हैं-भवनपति, व्यन्तर, ज्योतिष्क, तथा वैमानिक। भवनपति निकाय के देवों का निवास जंबूद्वीप में स्थित मेरु पर्वत के नीचे उत्तर तथा दक्षिण दिशा में है। व्यंतर निकाय के देव तीनों लोकों में रहते हैं। ज्योतिष्क निकाय के देव मेरु पर्वत के समतल भूमि भाग से सात सौ नव्वे योजन की ऊंचाई से शुरू होने वाले ज्योतिश्चक्र में हैं। यह ज्योतिश्चक्र वहां से लेकर एक सौ दस योजन परिमाण तक है। इस चक्र से भी ऊपर असंख्यात योजन की ऊंचाई के अनन्तर उत्तरोत्तर एक दूसरे के ऊपर अवस्थित विमानों में वैमानिक देव रहते हैं।
भवनवासी निकाय के देवों के दस भेद हैं-असुर कुमार,
१ पेतवत्थु १.५. २ Buddhist Conception of Spirits p. 42.
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