Book Title: Atmamimansa
Author(s): Dalsukh Malvania
Publisher: Jain Sanskruti Sanshodhan Mandal Banaras

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Page 145
________________ ( १३६ ) वैदिक परंपरा में देवलोक और देवों की कल्पना प्राचीन है। किन्तु वेदों में इस कल्पना को वहुत समय बाद स्थान मिला कि देवलोक मनुष्य की मृत्यु के बाद का परलोक है। नरक और नारकों संबंधी कल्पना तो वेद में सर्वथा अस्पष्ट है। विद्वानों ने यह बात स्वीकार की है कि वैदिकों ने परलोक एवं पुनर्जन्म की जो कल्पना की है, उसका कारण वेद-बाह्य प्रभाव है। जैनों ने जिस प्रकार कर्म विद्या को एक शास्त्र का रूप दिया, उसी प्रकार इस विद्या से अविच्छिन्न रूपेण संबद्ध परलोक विद्या को भी शास्त्र का ही रूप प्रदान किया। यही कारण है कि जैनों की देव एवं नारक संबंधी कल्पना में व्ववस्था और एकसूत्रता है। आगम से लेकर आज तक के रचित जैन साहित्य में देवों और नारकों के वर्णन विषयक महत्त्वहीन अपवादों की उपेक्षा करने पर मालूम होगा कि उसमें लेशमात्र भी विवाद दृग्गोचर नहीं होता। बौद्ध साहित्य के पढ़ने वाले पग पग पर यह अनुभव करते हैं कि बौद्धों में यह विद्या बाहर से आई है। बौद्धों के प्राचीन सूत्र ग्रंथों में देवों अथवा नरोंक की संख्या में एकरूपता नहीं है। यही नहीं देवों के अनेक प्रकार के नामों में वर्गीकरण तथा व्यवस्था का भी अभाव है। परन्तु अभिधम्म काल में बौद्धधर्म में देवों और नरकों की सुव्यवस्था हुई थी। यह बात भी स्पष्ट है कि प्रेतयोनि जैसी योनि की कल्पना बौद्ध धर्म अथवा सिद्धान्तों के अनुकूल नहीं, फिर भी लौकिक व्यवहार के कारण उसे मान्यता प्राप्त हुई। १ Ranade & Belvelkar-Creative Period p. 375. : Dr. Law: Heaven & Hell (Introduction); Buddhist Conception of Spirits, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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