Book Title: Atmamimansa
Author(s): Dalsukh Malvania
Publisher: Jain Sanskruti Sanshodhan Mandal Banaras

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Page 149
________________ ( १४० ) स्वीकार किया गया। इसका परिणाम यह हुआ कि बाद में यज्ञ के लिए सब देवों की महत्ता समान रूप से स्वीकार की गई और अन्त में 'एकं सद् विप्रा बहुधा वदन्ति'' विद्वान् एक ही तत्त्व का नाना प्रकार से कथन करते हैं-यह मान्यता रूढ़ हो गई। फिर भी यज्ञप्रसंग में व्यक्तिगत देवों के प्रति निष्ठा कभी भी कम नहीं हुई। भिन्न भिन्न देवों के नाम से यज्ञ होते रहे। इस लिए हमें यह बात माननी पड़ती है कि ऋग्वेद काल में किसी एक ही देव का अन्य देवों की अपेक्षा अधिक महत्त्व नहीं था। अतः ऋग्वेदकाल में एक देव के स्थान पर दूसरे देव को प्रतिष्ठित कर देने की कल्पना करना असंगत है। - सभी देव द्युलोक निवासी नहीं हैं। वैदिकों ने लोक के जो तीन विभाग किए हैं, उनमें उनका निवास है। धुलोक वासी देवों में द्यौ, वरुण, सूर्य, मित्र, विष्णु, दक्ष, अश्विन आदि का समावेश है। अन्तरिक्ष में निवास करने वाले देव ये हैं-इन्द्र, मरुत्, रुद्र, पर्जन्य, आपः आदि । पृथ्वी पर अग्नि, सोम, बृहस्पति आदि देवों का निवास है। वैदिक स्वर्ग-नरक इस लोक में जो मनुष्य शुभ कर्म करते हैं, वे मर कर स्वर्ग में यमलोक पहुंचते हैं। यह यमलोक प्रकाश पुज से व्याप्त है। वहां उन लोगों को अन्न और सोम पर्याप्त मात्रा में मिलता है और उनकी सभी कामनाएँ पूर्ण होती हैं। कुछ व्यक्ति विष्णु अथवा १ ऋग्वेद १. १६४. ४६. २ देशमुख की पूर्वोक्त पुस्तक पृ० ३१७-३२२ का सार । 3 ऋग्वेद ९. ११३. ७ से । . ४ ऋग्वेद १. १५४. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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