Book Title: Atmamimansa
Author(s): Dalsukh Malvania
Publisher: Jain Sanskruti Sanshodhan Mandal Banaras

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Page 152
________________ ( १४३ ) जाता है। वहां वह मनके द्वारा आर नामक सरोवर को पार करता है और येष्टिहा (उपासना में विघ्न डालने वाले ) देवों के पास पहुंचता है। वे देव उसे देखते ही भाग जाते हैं। तत्पश्चात् वह मनके द्वारा ही विरजा नदी पार करता है। यहां वह पुण्य और पाप को छोड़ देता है। उसके बाद वह इल्य नामक वृक्ष के निकट जाता है और वहां उसे ब्रह्मा की गंध आती है। फिर वह सालज्य नगर के पास पहुंचता है। वहां उसमें ब्रह्मतेज प्रविष्ट होता। तदनन्तर वह इन्द्र और बृहस्पति नामक चौकीदारों के पास आता है। वे भी उसे देख कर भग जाते हैं। वहां से चल कर विभुनामक सभा स्थान में आता है। यहां उसकी कीर्ति इतनी बढ़ जाती है जितनी कि ब्रह्मा की। फिर वह विचक्षणा नाम के ज्ञानरूप सिंहासन के समीप आता है। और अपनी बुद्धि द्वारा समस्त विश्व को देखता है। अन्त में वह अमितौजा नामक ब्रह्म के पलंग के निकट आता है। जब वह उस पलंग पर आरूढ होता है, तब वहां आसीन ब्रह्मा उससे पूछता है, “तुम कौन हो ?" वह उत्तर देता है, "जो आप हैं, वही मैं हूँ।" ब्रह्मा पुनः पूछता है, 'मैं कौन हूँ ?" वह व्यक्ति उत्तर देता है, 'आप सत्य स्वरूप हैं। इस प्रकार अन्य अनेक प्रश्न पूछ कर जब ब्रह्मा की पूर्णतः तुष्टि हो जाती है, तब वह उसे अपने समान समझता है। . इसी उपनिषद् में पितृयान के वर्णन का सार यह हैचन्द्रलोक ही पितृलोक है। सभी मरने वाले यहां पहुंचते हैं । किन्तु जिनकी इच्छा पितृलोक में निवास करने की न हो, उन्हें चन्द्र ऊपर के लोक में भेज देता है और जिनकी अभिलाषा चन्द्रलोक की हो, उन्हें चन्द्र वर्षा के रूपमें इस पृथ्वी पर जन्म १ कौषीतकी प्रथम अध्याय देखें। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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