Book Title: Atmamimansa
Author(s): Dalsukh Malvania
Publisher: Jain Sanskruti Sanshodhan Mandal Banaras

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Page 153
________________ ( १४४ ) लेने के लिए भेज देता है । ऐसे जीव अपने कर्मों और ज्ञान के अनुसार कीट, पतंग, पक्षी, सिंह, व्याघ्र, मछली, रीछ, मनुष्य अथवा अन्य किसी रूप में भिन्न भिन्न स्थानों में जन्म लेते हैं। इस प्रकार पितृयान के मार्ग में जाने वालों को पुनः इस लोक में आना पड़ता है। - सारांश यह है कि ब्रह्मीभाव को प्राप्त कर लेने वाले जीव जिस मार्ग से ब्रह्मलोक में जाते हैं, उसे देवयान कहते हैं, किंतु अपने कर्मों के अनुसार जिनकी मृत्यु पुनः होने वाली है वे चन्द्रलोक में जाकर लौट आते हैं। उनके मार्ग का नाम पितृयान है और उनकी योनी प्रेतयोनी कहलाती है। ... इस उपर्युक्त वर्णन से हमें यह ज्ञात हो जाता है कि विशेषावश्यक ग्रन्थ में परलोक के सादृश्य-वैसदृश्य के संबंध में जो चर्चा है, उसके विषय में उपनिषदों का क्या मत है। यह भी पता लगता है कि उपनिषद् के अनुसार जीव कर्मानुसार विसदृश अवस्था को प्राप्त होते हैं। यही मत जैनों का भी है। पौराणिक देवलोक - यह बात लिखी जा चुकी है कि वैदिक मान्यतानुसार तीनों लोक में देवों का निवास है। पौराणिक काल में भी इसी मत का समर्थन किया गया । योगदर्शन के व्यासभाष्य' में बताया गया है कि पाताल, जलधि--समुद्र तथा पर्वतों में असुर, गंधर्व, किन्नर, किंपुरुष, यक्ष, राक्षस, भूत, प्रेत, पिशाच, अपस्मारक, अप्सरस् , ब्रह्मराक्षस, कुष्मांड, विनायक नाम के देवनिकाय १ कौषीतकी १.२. २ विभूतिपाद २६. पाएकवलोक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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