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(६२ ) बौद्ध पिटक में पकुध कात्यायन के मत का वर्णन निम्नप्रकारेण किया गया है :--"सात पदार्थ एसे हैं जो किसी ने बनाए नहीं, बनवाए नहीं। उनका न तो निर्माण किया गया और न कराया गया। वे वन्ध्य हैं, कूटस्थ हैं और स्तम्भ के समान अचल हैं। वे हिलते नहीं, बदलते नहीं और एक दूसरे के लिए त्रासदायक नहीं। वे एक दूसरे के दुःख को, सुख को या दोनों को उत्पन्न नहीं कर सकते । वे सात तत्त्व ये हैं-पृथ्वीकाय, अपकाय, तेजकाय, वायुकाय, सुख, दुःख और जीव । इनका नाश करने वाला, करवाने वाला, इनको सुनने वाला, कहने वाला, जानने वाला अथवा इनका बर्णन करने वाला कोई भी नहीं है।" यदि कोई व्यक्ति तीक्ष्ण शस्त्र द्वारा किसी के मस्तक का छेदन करता है तो वह उसके जीवन का हरण नहीं करता। इस से केवल यह समझना चाहिये कि इन सात पदार्थों के अन्तःस्थित स्थल में शस्त्रों का प्रवेश' हुआ! पकुध के इस मत को नियतिवाद ही कहना चाहिए।
त्रिपिटक में अक्रियावादी पूरणकाश्यप के मत का वर्णन इन शब्दों में किया गया है:-"किसी ने कुछ भी किया हो अथवा कराया हो, काटा हो या कटवाया हो, त्रास दिया हो या दिलवाया
हो, प्राणी का बध किया हो, चोरी की हो, घर में सेंध लगाई । हो, डाका डाला हो, व्यभिचार किया हो, झूठ बोला हो, तो भी उसे पाप नहीं लगता ! यदि कोई व्यक्ति तीक्ष्ण धार वाले चक्र से पृथ्वी पर मांस का बड़ा भारी ढेर लगा दे तो भी इसमें लेशमात्र पाप नहीं। गंगा नदी के दक्षिण तट पर जाकर कोई मारपीट करे, कतल करे या कराए, त्रास दे या दिलाए तो भी रत्ती भर पाप नहीं। गंगा नदी के उत्तर तट पर जाकर कोई दान करे या
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१ सामाफलसुत्त दीघनिकाय २, बुद्ध चरित प० १७३ ।
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