Book Title: Atmamimansa
Author(s): Dalsukh Malvania
Publisher: Jain Sanskruti Sanshodhan Mandal Banaras

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Page 125
________________ ( ११६ ) निमित्त कारण है। विश्व की विचित्रता का आधार भी यही है। नैयायिक वैशेषिक केवल एक तत्त्व से समस्त सृष्टि की उत्पत्ति नहीं मानते, फिर भी वे समस्त कार्यों में कर्म या अदृष्ट को साधारण कारण मानते हैं। अर्थात् जड़ एवं चेतन के समस्त कार्यों में अदृष्ट एक साधारण कारण है। चाहे सृष्टि जड़ चेतन की हो, परन्तु वे यह बात स्वीकार करते हैं कि वह चेतन के प्रयोजन की सिद्धि में सहायक है अतः इसमें चेतन का अदृष्ट निमित्त कारण है। बौद्ध दर्शन की मान्यता है कि कर्म का नियम जड़ सृष्टि में कार्य नहीं करता। यही नहीं, उसके मतानुसार जीवों की सभी प्रकार की वेदना का भी कारण कर्म नहीं है। मिलिन्द प्रश्न में जीवों की वेदना के आठ कारण बताए गए है :-वात, पित्त, कफ, इन तीनों का सन्निपात, ऋतु, विषमाहार, औपक्रमिक और कर्म । जीव इन आठ कारणों में से किसी भी एक कारण के फलस्वरूप वेदना का अनुभव करता है। आचार्य नागसेन ने कहा है कि वेदना के उपर्युक्त आठ कारणों के अस्तित्व में जीवों की सम्पूर्ण वेदना का कारण कर्म को ही मानना मिथ्या है। जीवों की वेदना का अत्यन्त अल्प भाग पूर्वकृत कर्म के फल का परिणाम है, अधिकतर भाग का आधार अन्य कारण हैं। कौन सी वेदना किस कारण का परिणाम है, इस बात का अंतिम निर्णय भगवान् बुद्ध ही कर सकते हैं। जैनमतानुसार भी कर्म का नियम आध्यात्मिक सृष्टि में लागू होता है । भौतिक सृष्टि में यह नियम अकिचित्कर है। जड़ सृष्टि का निर्माण अपने ही नियमानुसार होता है। जीवसृष्टि में विविधता का कारण कर्म का नियम है । जीवों के मनुष्य, देव, नियंच, नारकादि विविध रूप; शरीरों की विविधता; जीवों के सुख, दुःख, ज्ञान, अज्ञान, चरित्र, अचरित्र १ मिलिन्द प्रश्न ४. १. ६२, पृ० १३७ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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