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( ११३ ) सम्मत सिद्धान्त है। किंतु आत्मा के इन कषायों की अभिव्यक्ति मन, वचन और काय से ही होती है। इन तीनों में से किसी एक का आश्रय लिए बिना कषायों के व्यक्त होने का अन्य कोई भी मार्ग नहीं है। अतः प्रश्न होता है मन, वचन, काय इन तीनों में कौनसा अवलम्बन प्रबल है ? ___ 'मन एव मनुष्याणां कारणं बंधमोक्षयोः ।
बन्धाय विषयासक्तं मुक्त्यै निर्विषयं स्मृतम् ।।' ब्रह्मबिन्दु उपनिषद् (२) के उपर्युक्त कथन से सिद्ध होता है कि मन ही प्रबल कारण है। काय और वचन की प्रवृत्ति में मन सहायक माना गया है। यदि मन का सहयोग न हो तो वचन अथवा काय की प्रवृत्ति अव्यवस्थित होती है। अतः उपनिषत् के अनुसार मन, वचन, काय में मन की ही प्रबलता है। इसी लिए अर्जुन ने कृष्ण को कहा, 'चञ्चलं हि मनः कृष्ण'। इस चंचल मन को वश में करना सरल नहीं। जब तक इस का सर्वथा क्षय न हो जाए, इसका निरोध जारी रहना चाहिए। जब आत्मा मन का पूर्ण निरोध कर लेती है, तब ही वह परमपद को प्राप्त करती है | जैनों के समान उपनिषदों में इस मन को दो प्रकार का माना गया है, शुद्ध और अशुद्ध । काम या संकल्प रूप मन अशुद्ध है और उससे रहित शुद्धः। अशुद्ध मन संसार का साधन है और शुद्ध मन मोक्ष का। जैन मान्यतानुसार जब तक कषाय का नाश नहीं हो जाता, तब तक अशुद्ध मन विद्यमान रहता है। क्षीणकषाय वीतराग छद्मस्थ गुणस्थानक नामक बारहवें गुणस्थानक
५ गीता ६.३४ २ "तावदेव निरोद्धव्यं यावद् हृदि गतं क्षयम् ।
एतज्ज्ञानं च मोक्षं च अतोऽन्यो ग्रन्थविस्तरः॥" ब्रह्मबिन्दु ५. । ब्रह्मबिन्दु १.
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