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( ७७ ) होता है। दूसरे दर्शनों में मान्य आत्म विकाश के क्रम की इससे तुलना की जा सकती है। जैनों ने उसे गुणस्थानक्रमारोह कहा है और बौद्धों ने उसे योगचर्या की भूमि का नाम दिया है। वैदिक दर्शन में इसी वस्तु को 'भूमिका' कहा गया है। ___ उपनिषदों में जीवन्मुक्ति का सिद्धान्त भी उपलब्ध होता है। इसी कठोपनिषद् में आगे जाकर लिखा है कि जब मनुष्य के हृदय में रही हुई सभी कामनाएँ पूर्ण हो जाती हैं तब वह अमर बन जाता है और यहीं ब्रह्म की प्राप्ति कर लेता है। जब यहां हृदय की सभी गांठें टूट जाती हैं तब मनुष्य अमर हो जाता है । ___ उपनिषदों के व्याख्याकारों का जीवन्मुक्ति के विषय में एक मत नहीं है। प्राचार्य शंकर, विज्ञान भिक्षु और वल्लभ इस सिद्धांत को स्वीकार करते हैं किंतु भक्ति मार्ग के अनुयायी अन्य वेदान्ती-रामानुज, निम्बार्क और मध्व इसे नहीं मानते ।
बौद्धों के मत में 'सोपादिसेस निर्वाण' और 'अनुपादिसेस निर्वाण' क्रमशः जीवन्मुक्ति और विदेह मुक्ति के नाम हैं। उपादि का अर्थ है पांच स्कंध। जब तक ये शेष हों तब तक 'सोपादिसेस निर्वाण' और जब इन स्कंधों का निरोध हो जाए तब 'अनुपादिसेस निर्वाण' ३ होता है।
न्यायवैशेषिक और सांख्ययोग के मत में भी जीवन्मुक्ति संभव मानी गई है।
१ कठ २.३.१४---१५; मुंडक ३.२.६; बृहदा० ४.४.६---७. २ प्रो० भट्ट की पूर्वोक्त प्रस्तावना देखें। 3 विसुद्धि मग्ग १६.७३. ४ न्याय भाष्य ४.२.२. । सांख्य का० ६७; योग भाष्य ४.३०.
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