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( ७८ ) ... जो विचारकगण जीवन्मुक्ति को स्वीकार नहीं करते, उनके मत में आत्मसाक्षात्कार होते ही समस्त कर्म क्षीण हो जाते हैं
और आत्मा विदेह होकर मुक्त बन जाती है। इसके विपरीत जो लोग जीवन्मुक्ति मानते हैं, उनकी मान्यतानुसार आत्मसाक्षात्कार हो जाने पर भी कर्म अपने समय पर ही फल देकर क्षीण होते हैं, तत्काल नहीं। इस प्रकार आत्मा पहले जीवन्मुक्त बनती है, और फिर कालान्तर में शेष संस्कार क्षीण होने पर विदेह मुक्त।
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