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( २४ ) ब्रह्म और आत्मा पृथक् पृथक् नहीं हैं, किन्तु एक ही तत्त्व के दो नाम हैं। इसी आत्मा को समस्त तत्त्वों से पर ऐसा पुरुष भी माना गया है और सब भूतों में गूढात्मा भी कहा गया है । कठोपनिषद् में बुद्धि-विज्ञान को प्राकृत-जड़ बताया गया है। अतः यह बात स्वाभाविक है कि विज्ञानात्मा की कल्पना से विचारक संतुष्ट न हों । अतः उससे भी आगे चिदात्मा-पुरुषचेतनात्मा की शोध आवश्यक थी और वह ब्रह्म अथवा चेतनआत्मा की कल्पना से पूर्ण हुई। इस प्रकार चिन्तकों ने अभौतिक तत्त्व के रूप में आत्मा का निश्चय किया। इस क्रम से भूत से लेकर चेतन की आत्मविचारणा की उत्क्रांति का इतिहास यहां पूर्ण हो जाता है।
विज्ञानात्मा का वर्णन करते हुए पहले यह लिखा जा चुका है कि उसे स्वतः प्रकाशित नहीं माना गया । सुप्तावस्था में वह अचेतन हो जाता है, वह स्वप्रकाशक नहीं। किन्तु इस पुरुष-चेतन
आत्मा अथवा चिदात्मा के विषय में यह बात नहीं। वह स्वयं प्रकाश स्वरूप है, स्वतः प्रकाशित होता है। वह विज्ञान का भी अन्तर्यामी है । इस सर्वान्तरात्मा के विषय में कहा गया है कि वह साक्षात् है, अपरोक्ष है, प्राण का ग्रहण करने वाला वही है, आँख का देखने वाला वही है, कान का सुनने वाला वही है, मन का विचार करने वाला वही है, ज्ञान का जानने
१ सर्वं हि एतद् ब्रह्म, अयमात्मा ब्रह्म-मांडुक्य २; बृहदा० २.५.१९. २ कठो० १. ३. १०-१२.
३ बृहदा० ४. ३. ६-९, विज्ञानात्मा व प्रज्ञानघन (बृहदा० ४.५. १३) आत्मा में अन्तर है। पहला प्राकृत है जब कि दूसरा पुरुषचेतन है।
४ बृहदा० ३.७.२२ ।
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