________________
आस्तित्व में आईं, किन्तु वर्तमान काल में जैन और बौद्ध परंपरा ही विद्यमान हैं। हम यह देख चुके हैं कि अद्वैत चेतन आत्मा अथवा ब्रह्म तत्त्व को स्वीकार कर उपनिषद्-विचार धारा पराकाष्ठा को पहुंची। किन्तु वैदिक दर्शनों में न्याय-वैशेषिक, सांख्य-योग,
और पूर्व मीमांसा केवल अद्वैत आत्मा को ही नहीं अपि तु जड़ चेतन दोनों प्रकार के तत्त्वों को मौलिक मानते हैं। यही नहीं, उन्होंने आत्म तत्त्व को भी एक न मान कर बहुसंख्यक स्वीकार किया है। उक्त सभी दर्शनों ने आत्मा को उपनिषदों की भांति चेतन प्रतिपादित किया है-अर्थात् आत्मा को उन्होंने भौतिक नहीं माना। (९) जैनमत
इन सब वैदिक दर्शनों के समान जैन दर्शन में भी आत्मा को चेतन तत्त्व स्वीकार किया गया है और उसे अनेक माना गया है। किंतु यह चेतन तत्त्व अपनी संसारी अवस्था में बौद्ध दर्शन के पुद्गल के समान मूर्त्तामूर्त है। वह ज्ञानादि गुण की अपेक्षा से अमूर्त है और कर्म के साथ संबंधित होने के कारण मूर्त है। इसके विपरीत अन्य सब दर्शनों ने चेतन को अमूर्त माना है।
उपसंहार समस्त भारतीय दर्शनों ने यह निष्कर्ष स्वीकार किया है कि आत्मा का स्वरूप चैतन्य है। नास्तिक दर्शन के नाम से प्रसिद्ध चार्वाक दर्शन ने भी आत्मा को चेतन ही कहा है। उसमें और दूसरे दर्शनों में मतभेद यह है कि चार्वाक के अनुसार आत्मा चेतन होते हुए भी शाश्वत तत्त्व नहीं, वह भूतों से उत्पन्न होता है। बौद्ध भी चेतन तत्त्व को अन्य दर्शनों की भांति नित्य नहीं मानते, अपितु चार्वाकों के समान जन्य मानते हैं। फिर
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org