Book Title: Atmamimansa
Author(s): Dalsukh Malvania
Publisher: Jain Sanskruti Sanshodhan Mandal Banaras

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Page 23
________________ ( १४ ) समर्थन होता है। इस प्रकार इन्द्रियात्मवाद का समावेश प्राणात्मवाद में हो जाता है। - सांख्य-संमत वैकृतिक बंध की व्याख्या करते हुए वाचस्पति मिश्र ने इन्द्रियों को पुरुष मानने वालों का उल्लेख किया है। वह भी इन्द्रियात्मवादियों के विषय में समझा जाना चाहिए। __इस प्रकार आत्मा को देहरूप माना जाए अथवा भूतात्मक, प्राणरूप माना जाए अथवा इन्द्रियरूप, इन सब मतों में आत्मा अपने भौतिक रूप में ही हमारे सामने उपस्थित होती है। इन से उसका अभौतिक रूप प्रगट नहीं होता। अथवा हम यह भी कह सकते हैं कि इन सब मतों के अनुसार हमें आत्मा अपने व्यक्तरूप में दृष्टिगोचर होती है। वह इन्द्रिय ग्राह्य है, यह बात समान्यतः इन सब मतों में मानी गयी है। आत्मा के इस रूप को सन्मुख रखते हुए ही उसका विश्लेषण किया गया है। इसीलिए उसके अव्यक्त अथवा अभौतिक स्वरूप की ओर इन में से किसी का ध्यान नहीं गया। परन्तु ऋषियों ने जिस प्रकार विश्व के भौतिक रूप के पार जाकर एक अव्यक्त तत्त्व को माना, उसी प्रकार उन्होंने आत्मा के विषय में यह स्वीकार किया कि वह भी अपने पूर्ण रूप में ऐसा नहीं जिसे आँखों द्वारा देखा जा सके। जब से उनकी ऐसी प्रवृत्ति हुई, तब से आत्म-विचारणा ने नया रूप धारण किया । जब तक आत्मा का भौतिक रूप ही स्वीकार किया जाए तब तक इस लोक को छोड़कर उसके परलोक गमन की मान्यता, अथवा परलोक गमन में कारणभूत कर्म की मान्यता या पुण्य पाप की 'सांख्यका० ४४ २ऋग्वेद १०.१२९ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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