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अन्तकृतदशा सूत्र ****************************承**********************本*
तत्थ णं चंपाए णयरीए उत्तरपुरत्थिमे दिसिभाए एत्थ णं पुण्णभद्दे णामं चेइए होत्था, वणसंडे वण्णओ। तीसे णं चंपाए णयरीए कोणिए णामं राया होत्था, महया हिमवंत, वण्णओ। ___ कठिन शब्दार्थ - उत्तरपुरथिमे - उत्तर पूर्व, दिसिभाए - दिशा भाग, पुण्णभद्दे णामं - पूर्णभद्र नामक, चेइए - चैत्य (यक्षायतन), वणसंडे - वनखण्ड, कोणिए - कोणिक, राया - राजा, महया हिमवंत - महा हिमवान्।
भावार्थ - उस चम्पानगरी के उत्तर-पूर्व दिशा भाग (ईशान-कोण) में पूर्णभद्र नाम का चैत्य (यक्षायतन) था। वहाँ एक अति रमणीय सुन्दर वनखण्ड था। उसका भी विस्तृत वर्णन औपपातिक सूत्र से जानना चाहिए। . ___ उस चम्पा नगरी में कोणिक नाम का राजा राज करता था। वह महा हिमवान् महा मलय, महेन्द्र और मेरु पर्वत के समान प्रभावशाली था अर्थात् जिस प्रकार महा हिमवान् पर्वत, लोक की मर्यादा करता है, उसी प्रकार वह भी प्रजा के लिए मर्यादा - नियम बांधने वाला था। जिस प्रकार महामलय पर्वत का सुगन्धित पवन सर्वत्र फैलता है, उसी प्रकार उसकी कीर्ति और यश चारों ओर फैला हुआ था। जिस प्रकार मेरु पर्वत अडिग है, उसी प्रकार वह भी अपनी प्रतिज्ञा एवं कर्तव्य पालन में दृढ़ एवं अडिग था। जिस प्रकार शक्र आदि इन्द्र, देवों में महान् हैं, उसी प्रकार वह भी मनुष्यों में प्रधान था। उस कोणिक राजा का विस्तृत वर्णन औपपातिक सूत्र से जानना चाहिए।
विवेचन - 'चैत्य' शब्द अनेकार्थवाची है। सुप्रसिद्ध जैनाचार्य पूज्य श्री जयमलजी म. सा. ने चैत्य शब्द के ११२ अर्थों की गवेषणा की है। (देखें संघ द्वारा प्रकाशित औपपातिक सूत्र पृ. ६-७)। यहां चैत्य शब्द का अर्थ है - व्यंतरायतन - व्यंतर देव (यक्ष) का स्थान।
प्रश्न - वनखण्ड किसे कहते हैं?
उत्तर - जहां एक ही जाति के प्रधान वृक्ष हों, उसे वनखण्ड कहते हैं। कोई कोई आचार्य ऐसा भी कहते हैं कि - जहां अनेक जाति के प्रधान वृक्ष हों, उसे 'वनखण्ड' कहते हैं।
कोणिक, श्रेणिक महाराज के पुत्र और चेलना माता के अंगजात थे। कोणिक महाराज को जन्मते ही उकरड़ी पर डाल दिये जाने से मुर्गे द्वारा उनकी अंगुली कुतर दी गई थी, कूण दी गई थी। अतः उनका नाम 'कोणिक' रखा गया। 'महया' विशेषण कोणिक राजा की महानता दर्शाता है। कोणिक राजा के गुणों का विशेष वर्णन उववाई (औपपातिक) सूत्र में है।
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