Book Title: Antkruddasha Sutra
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 244
________________ वर्ग ८ अध्ययन १० - महासेनकृष्णा आर्या २१६ ******************************************************************* तएणं सा महासेणकण्हा अज्जा आयंबिलवड्डमाणं तवोकम्मं चोहसेहिं वासेहिं तिहि य मासेहि वीसेहिं य अहोरत्तेहिं अहासुत्तं जाव सम्मं कारणं फासेइ जाव आराहित्ता, जेणेव अज्जचंदणा अज्जा तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता अज्जचंदणं अज्जं वंदइ णमंस; वंदित्ता णमंसित्ता बहूहिं चउत्थेहिं जाव भावेमाणी विहरइ। तएणं सा महासेणकण्हा अज्जा तेणं ओरालेणं जाव उवसोभेमाणी उवसोभेमाणी चिट्ठइ। भावार्थ - इस प्रकार महासेनकृष्णा आर्या ने चौदह वर्ष, तीन मास और बीस दिन में 'आयम्बिल-वर्द्धमान' नामक तप का सूत्रोक्त विधि से आराधन किया। इसमें आयम्बिल के पाँच हजार पचास दिन होते हैं और उपवास के एक सौ दिन होते हैं। इस प्रकार सभी मिला कर पाँच हजार एक सौ पचास दिन होते हैं। इस तप में चढ़ना ही है, उतरना नहीं है। ... इसके बाद वह महासेनकृष्णा आर्या, आर्य चन्दनबाला आर्या के पास आई और वन्दन. नमस्कार किया। इसके बाद उपवास आदि बहुत-सी तपश्चर्या करती और आत्मा को भावित करती हुई विचरने लगी। उन कठिन तपस्याओं के कारण वह अत्यन्त दुर्बल हो गई, तथापि आन्तरिक तप-तेज के कारण वह अत्यन्त शोभित होने लगी। विवेचन - आयंबिल वर्द्धमान वह तप है जिसमें आयंबिल क्रमशः बढ़ाया जाता है। इस तप की आराधना में १४ वर्ष ३ माह २० दिन लगते है। इसकी स्थापना इस प्रकार है - . आयम्बिल-वर्धमान तप . | ११२ १३ १४ १५ १६ १७ १८ ११ | १० | १| | ११|१| १२|१| १३|१|१४|१| १५/१/१६/१] १७/१/१८/११६/१ | २० | १ |२११२२१|२३|१२४|१२५१२६/१२७/१२८ २६/१३० १ | ३११/३२] १,३३/१३४|१३५१|३६/१/३७/१३८/१] ३६१४० १ ४११.४२|१|४३/१४४/१/४५/१.४६/१/४७/१] ४८/१] ४६१ | ५० | १ | ५११५२|१|५३/१/५४|१|५५/१५६/१/५७/१५८/१] ५६/१६० १. | ६१/१/६२१६३/१६४१|६५/१६६/१६७/१६८१६६१/७० | १ | ७१|१|७२/१/७३/१/७४/१/७५/१७६/१७७/१७८१] ७६/१८०१ ८१|१|२|१|८३|१|४|१८५१८६/ १७/१८८१८६११० १ | ६११/६२|१|६३/१६४|१|६५/१-६६/१/६७/१/६८/१/६६/१] १००१ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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