Book Title: Antkruddasha Sutra
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 245
________________ २२० अन्तकृतदशा सूत्र 宋十七**中中中中中中中中中中中中中中中中******** ************ ************本來 तएणं तीसे महासेणकण्हाए अज्जाए अण्णया कयाइं पुव्वरत्तावरत्तकाले चिंता, जहा खंदयस्स जाव अज्जचंदणं अज्ज आपुच्छइ जाव संलेहणा, कालं अणवकंखमाणी विहरइ। तएणं सा महासेणकण्हा अज्जा अज्जचंदणाए अज्जाए अंतिए सामाइयमाझ्याइं एक्कारस अंगाई अहिज्जित्ता बहुपडिपुण्णाई सत्तरस वासाइं परियायं पालइत्ता मासियाए संलेहणाए अप्पाणं झूसित्ता सहि भत्ताइं अणसणाए छेदित्ता जस्सट्ठाए कीरइ जाव तमढं आराहेइ चरिम उस्सासणीसासेहिं सिद्धा। भावार्थ - एक दिन पिछली रात्रि के समय महासेनकृष्णा आर्या ने स्कन्दक के समान चिन्तन किया - “मेरा शरीर तपस्या से कृश हो गया है, तथापि अभी तक मुझ में उत्थान, बल, वीर्य आदि है। इसलिए कल सूर्योदय होते ही आर्य चन्दनबाला आर्या के पास जा कर, उनसे आज्ञा ले कर संथारा करूँ।" तदनुसार दूसरे दिन सूर्योदय होते ही आर्य चन्दनबाला आर्या के पास जा कर वन्दन-नमस्कार कर के संथारे के लिए आज्ञा मांगी। आज्ञा ले कर संथारा ग्रहण किया और मरण को न चाहती हुई धर्मध्यान-शुक्लध्यान में तल्लीन रहने लगी। महासेनकृष्णा आर्या ने चन्दनबाला आर्या से सामायिक आदि ग्यारह अंगों का अध्ययन किया। सत्तरह वर्ष तक चारित्र-पर्याय का पालन किया तथा एक मास की संलेखना से आत्मा को भावित करती हुई, साठ भक्तों को अनशन से छेदित कर, अन्तिम श्वासोच्छ्वास में अपने सम्पूर्ण कर्मों को नष्ट कर के मोक्ष प्राप्त हुई। उपसंहार (६६) अट्ठ य वासा आई, एकोत्तरीयाए जाव सत्तरस। एसो खलु परियाओ, सेणियभज्जाण णायव्वो॥ भावार्थ - इन दस आर्याओं में से प्रथम काली आर्या ने आठ वर्ष तक चारित्र-पर्याय का पालन किया। दूसरी सुकाली आर्या ने नौ वर्ष तक चारित्र-पर्याय का पालन किया। इस प्रकार क्रमशः उत्तरोत्तर एक-एक रानी के चारित्र-पर्याय में एक वर्ष की वृद्धि होती गई। अन्तिम दसवीं रानी महासेनकृष्णा आर्या ने सतरह वर्ष तक चारित्र-पर्याय का पालन किया। ये सभी राजा श्रेणिक की रानियाँ थीं और कोणिक राजा की छोटी माताएँ थीं। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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