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वर्ग अध्ययन ६ महाकृष्णा आर्या
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कठिन शब्दार्थ - खुड्डागं सव्वओभद्दं - लघु- सर्वतोभद्र ।
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भावार्थ इसी प्रकार राजा श्रेणिक की भार्या और राजा कोणिक की छोटी माता महाकृष्णा रानी ने भी भगवान् के पास दीक्षा अंगीकार की। महाकृष्णा आर्या, आर्य चन्दनबाला आर्या की आज्ञा ले कर 'लघु- सर्वतोभद्र' तप करने लगी। उसकी विधि इस प्रकार है सर्वप्रथम उन्होंने उपवास किया और पारणा किया ( इसकी भी प्रथम परिपाटी के सभी पारणों में वियों का सेवन वर्जित नहीं है ) पारणा कर के बेला किया। पारणा कर तेला किया। इसी प्रकार चोला, पचोला किया, फिर तेला, चोला, पचोला, उपवास, बेला किया। फिर पचोला, उपवास, बेला, तेला, चोला । फिर बेला, तेला, चोला, पचोला, उपवास किया। फिर चोला, पचोला, उपवास, बेला, तेला किया। इस प्रकार महाकृष्णा आर्या ने 'लघु सर्वतोभद्र' तप की पहली परिपाटी पूरी की।,
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एवं खलु खुड्डागसव्वओभद्दस्स तवोकम्मस्स पढमं परिवाडिं तिहिं मासेहिं सहिं दिवसेहिं अहासुत्तं जाव आराहित्ता, दोच्चाए परिवाडिए चउत्थं करेइ, करित्ता विगइवज्जं पारेइ, पारित्ता जहा रयणावलीए तहा एत्थ वि चत्तारि परिवाडीओ, पारणा तहेव । चउण्हं कालो संवच्छरो मासो दस य दिवसा । सेसं तहेव जाव सिद्धा । भावार्थ इस एक परिपाटी में पूरे सौ दिन लगे, जिसमें पच्चीस दिन पारणे के और पचहत्तर · दिन तपस्या के हुए। इसके बाद इस तप की दूसरी परिपाटी की। इसमें पारणे में विगय का त्याग कर दिया। तीसरी परिपाटी में पारणे के दिन विगय के लेपमात्र का भी त्याग कर दिया। इसके बाद चौथी परिपाटी की। इसमें पारणे के दिन आयम्बिल किया। इस प्रकार उन्होंने लघुसर्वतोभद्र तप की चारों परिपाटी की। इसमें एक वर्ष, एक मास और दस दिन लगे। इस प्रकार इस तप की सूत्रोक्त विधि के अनुसार आराधना की । अन्त में संथारा कर के सभी कर्मों का क्षय कर सिद्धिगति को प्राप्त हुई ।
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