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वर्ग ४ अध्ययन २-१० *****krke kekkekkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkk*************************kakkkkkkkekcket
कठिन शब्दार्थ - बारसंगी - बारह अंगों का, पिया - पिता, माया - माता, एगगमाएक गम-एक समान।
- भावार्थ - इसी प्रकार मयालि, उवयालि, पुरुषसेन और वारिसेन का चरित्र भी जानना चाहिए। ये सभी वसुदेव के पुत्र और धारिणी के अंगजात थे।
- इसी प्रकार प्रद्युम्न का चरित्र भी जानना चाहिए। इनके पिता का नाम 'कृष्ण' और माता का नाम 'रुक्मिणी' था।
इसी प्रकार 'शाम्बकुमार' का वर्णन भी जानना चाहिए। इनके पिता का नाम 'कृष्ण' और माता का नाम 'जाम्बवती' था।
इसी प्रकार ‘अनिरुद्ध कुमार' का वर्णन भी जानना चाहिए। इनके पिता का नाम 'प्रद्युम्न'. और माता का नाम 'वैदर्भी' था।
इसी प्रकार 'सत्यनेमि' और 'दृढ़नेमि' इन दोनों कुमारों का वर्णन जानना चाहिए। इन दोनों के पिता का नाम 'समुद्रविजय' और माता नाम 'शिवादेवी' था। ' सभी अध्ययनों का वर्णन एक समान है।
हे जम्बू! श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने चतुर्थ वर्ग के भाव इस प्रकार कहे हैं।
विवेचन - इस वर्ग में वर्णित 'जालिकुमार' आदि दसों अध्ययनों के वर्णन में दीक्षा लेने के बाद उनके द्वादशांगी का ज्ञान सीखना बताया है। यहाँ पर 'द्वादशांगी' शब्द से 'सम्पूर्ण द्वादशांगी' (नन्दी एवं समवायांग सूत्र में वर्णित - दृष्टिवाद के परिकर्म आदि पाँचों भेदों से युक्त) का अध्ययन करना समझना चाहिए।
- तृतीय वर्ग में 'अनीकसेन' आदि कुमारों के वर्णन में दीक्षा लेने के बाद १४ पूर्वो को सीखना बताया है। '१४ पूर्वो के ज्ञान में 'दृष्टिवाद' नाम के बारहवें अंग सूत्र के 'परिकर्म, सूत्र, पूर्वगत एवं चूलिका' रूप चार भेदों का अध्ययन समझना चाहिए। चौथे भेद-'अनुयोग' (मूल प्रथमानुयोग और गंडिकानुयोग) का पूर्ण ज्ञान नहीं करने की संभावना लगती है। '१४ पूर्वी' शब्द से भिन्न द्वादशांगी व 'द्वादशांगी शब्द' से अभिन्न द्वादशांगी (सम्पूर्ण दृष्टिवाद) को समझना चाहिए।
॥ चौथे वर्ग के २ से १० अध्ययन समाप्त।
॥ इति चतुर्थ वर्ग समाप्त॥
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