________________
वर्ग ८ अध्ययन १ - तीसरी-चौथी परिपाटी
१८१ *******HENNIROHINIHINORIHEREMIkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkarkekekakakakakakakk*
कठिन शब्दार्थ - तच्चाए - तीसरी, चउत्था - चौथी, अलेवाडं - लेप रहित, आयंबिलंआयम्बिल।
भावार्थ - इसी प्रकार तीसरी परिपाटी भी की। तीसरी परिपाटी में पारणे के दिन विगय का लेप मात्र भी छोड़ दिया। इसी प्रकार चौथी परिपाटी भी की, परन्तु इसके पारणे में आयम्बिल किया। •
पढमम्मि सव्वकामपारणयं, बीइयए विगइवज्ज। तइयम्मि अलेवाडं, आयंबिलओ चउत्थम्मि॥
भावार्थ - प्रथम परिपाटी में पारणे में सर्वकामगुण युक्त, दूसरी में विगय त्याग, तीसरी में लेप का भी वर्जन किया और चौथी आयंबिल से की गई। . विवेचन - रत्नावली तप की चार परिपाटियाँ -
१. सर्वकामगुणित - प्रणीत रस भोजन, सरस भोजन सब इन्द्रियों एवं शरीर को प्रह्लादकारी (आनंदकारी) होने से आगमकार उसे 'सव्वकामगुणियं' कहते हैं। दूध, दही, घी, तेल, मिष्ठान्न आदि सब इन्द्रियों एवं शरीर को प्रह्लादानीय एवं सरस भोजन होने से साधु विधि से इन आहारों को ग्रहण करना सर्वकामगुणित है। . १. विगयवर्जित - दूध, दही, घी, मिष्ठान्नादि रूप धार विगय का वर्जन करते हुए लेपयुक्त शाक, रोटी, पुड़ी आदि ग्रहण करना विगयवर्जित है। .. ३. अलेपाक - चुपड़ी हुई रोटी एवं छौंक दिये हुए शाक आदि का वर्जन करते हुए, निविकृतिक (नीवी) प्रायोग्य, लूखी रोटी, बिना छौंक का शाक, लूणिया नींबू, बिना तेल की मिर्च, केरी प्रमुख के अथाणे (अचार), मक्खन निकाली हुई छाछ आदि ग्रहण करना अलेपाक है।
४. आयंबिल - विगय, घी, दूध, दही, तेल, गुड़ आदि सरस पदार्थ रहित लूखे व मिर्च मसाले तथा शाकादि से रहित यथासंभव अलूणी रोटी, भात, सेके हुए चने (भूगड़े) आदि
को पानी में डालकर एक ही बार आहार करना आयंबिल परिगृहीत है। __पहली परिपाटी में इन्द्रियों रूपी कामगुणों को पुष्ट करने वाले, तृप्ति देने वाले सभी प्रकार के कल्पनीय अशन, पान, खादिम, स्वादिम मेवे, मिष्ठान्न ग्रहण किए जाते हैं। इसीलिये ये पारणे सर्वकामगुणित कहे जाते हैं। सिंह केसरा मोदक को सर्वकामगुणित आहार का उदाहरण समझना चाहिए।
विगय के दो भेद किए गये हैं - १. धार विगय और २. लेप विगय। दूसरी परिपाटी में धार विगय का त्याग होता है और लेप विगय खुले रहते हैं।
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org