Book Title: Antkruddasha Sutra
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 214
________________ वर्ग ८ अध्ययन १ - पंडित मरण और मोक्ष गमन १८६ ******************************來********************************** भत्तपाणपडियाइक्खियाए- आहार पानी का त्याग करके, कालं - काल - मृत्यु की, अणवकंखमाणीए - चाहना नहीं करती हुई। भावार्थ - एक दिन पिछली रात्रि के समय काली आर्या के हृदय में स्कन्दक के समान इस प्रकार विचार उत्पन्न हुआ - “तपस्या के कारण मेरा शरीर अत्यन्त कृश हो गया है। इसलिए जब तक मुझ में उत्थान, कर्म, बल, वीर्य, पुरुषकार पराक्रम, श्रद्धा, धृति और संवेग आदि विद्यमान है, तब तक मुझे उचित है कि कल सूर्योदय होते ही आर्य चन्दनबाला आर्या को पूछ कर उनकी आज्ञा से संलेखना - झूषणा को सेवित करती हुई भक्तपान का प्रत्याख्यान कर के, मृत्यु को न चाहती हुई विचरण करूँ". - ऐसा विचार कर दूसरे दिन सूर्योदय होते ही वह आर्य चन्दनबाला आर्या के पास आई. और वन्दन-नमस्कार कर हाथ जोड़ कर बोली - 'हे आर्ये! मैं आपकी आज्ञा प्राप्त कर संलेखना-झूषणा करना चाहती हूँ।' आर्य चन्दनबाला आर्या ने कहा - 'हे देवानुप्रिय! जैसा तुम्हें सुख हो, वैसा करो। धर्म-कार्य में विलम्ब मत करो।' आर्य चन्दनबाला से आज्ञा प्राप्त कर काली आर्या ने संलेखना की। पंडित मरण और मोक्ष गमन सा काली अज्जा अज्जचंदणाए अजाए अंतिए सामाइयमाझ्याइं एक्कारस अंगाई अहिज्जित्ता बहुपडिपुण्णाई अट्ठ संवच्छराइं सामण्णपरियागं पाउणित्ता मासियाए संलेहणाए अप्पाणं झूसित्ता सहिँ भत्ताइं अणसणाए छेदित्ता जस्सट्टाए कीरइ णग्गभावे जाव चरिमेहिं उस्सासणीसासेहिं सिद्धा। .. कठिन शब्दार्थ - अट्ठ संवच्छराई - आठ वर्ष, चरिमेहिं उस्सासणीसासेहिं - अंतिम श्वासोच्छ्वासों में। ___भावार्थ - काली आर्या ने आर्य चन्दनबाला आर्या से सामायिक आदि ग्यारह अंगों का अध्ययन किया और पूरे आठ वर्ष तक चारित्र का पालन किया। अन्त में एक मास की संलेखना से आत्मा को सेवित कर, साठ भक्तों को अनशन से छेदन कर जिस अर्थ के लिए संयम ग्रहण किया था, उस अर्थ को अपने अन्तिम उच्छ्वासों में प्राप्त कर के वह सिद्ध-बुद्ध एवं मुक्त हो गई। || आठवें वर्ग का प्रथम अध्ययन समाप्त॥ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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