Book Title: Antkruddasha Sutra
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 226
________________ वर्ग ८ अध्ययन ५ - सुकृष्णा आयो २०१ ******************** ************************************* अज्जचंदणं अज्जं वंदइ णमंसइ, वंदित्ता णमंसित्ता एवं वयासी- “इच्छामि णं अज्जाओ! तुन्भेहिं अब्भणुण्णाया समाणी अट्ठमियं भिक्खुपडिमं उवसंपज्जित्ताणं विहरित्तए।" "अहासुहं देवाणुप्पिए! मा पडिबंधं करेह"। .. कठिन शब्दार्थ - एगूणपण्णाए - उनपचास, राइदिएहिं - रात दिन में, एगेण य छण्णउएणं भिक्खासएणं - एक सौ छियानवें भिक्षा की दत्तियां, अहासुत्तं - सूत्रोक्त विधि के अनुसार, अट्ठट्ठमियं - अष्ट अष्टमिका। भावार्थ - उनपचास रात-दिन में एक सौ छियानवें भिक्षा की दत्ति होती है। सुकृष्णा आर्या ने इसी प्रकार सूत्रोक्त विधि के अनुसार 'सप्तसप्तमिका' भिक्षुप्रतिमा की यथावत् आराधना की। आहार-पानी की सम्मिलित रूप से प्रथम सप्ताह में सात दत्तियाँ हुई, दूसरे सप्ताह में चौदह, तीसरे में इक्कीस, चौथे में अट्ठाईस, पाँचवें में पैंतीस, छठे में बयालीस और सातवें में उनपचास। इस प्रकार सभी मिलाकर एक सौ छियानवें दत्तियाँ हुईं। सप्तसप्तमिका भिक्षुप्रतिमा m| mm | | | | mmxw | ४| ४|४ | (४६ दिवस * १९६ दत्तियाँ) इसके बाद सुकृष्णा आर्या, आर्य चन्दनबाला आर्या के समीप आई और वन्दन-नमस्कार कर इस प्रकार बोली - 'हे पूज्ये! आपकी आज्ञा प्राप्त कर मैं अष्टअष्टमिका भिक्षुप्रतिमा तप Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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