Book Title: Antkruddasha Sutra
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 212
________________ वर्ग ८ अध्ययन १ - तप तेज से शरीर की शोभा . १८७ ******* **** ********* ** *** ** ** *** ******* * ********** तप तेज से शरीर की शोभा (८७) तए णं सा काली अज्जा तेणं ओरालेणं जाव धमणिसंतया जाया या वि होत्था।सेजहाणामएइंगाल सगडीवाजावसुहयहुयासणे इव भासरासिपलिच्छण्णा तवेणं तेएणं तवतेयसिरीए अईव अईव उवसोभेमाणी उवसोभेमाणी चिट्ठइ। ___ कठिन शब्दार्थ - ओरालेणं - उदार (प्रधान), धमणिसंतया जाया - धमनियां (नाडियां) प्रत्यक्ष दिखाई देने लगी, इंगाल सगडी - कोयले से भरी गाड़ी, सुहुयहुयासणे - होम की हुई अग्नि के समान, भासरासि पलिच्छण्णा - राख के ढेर से ढकी हुई अग्नि, तवेणं - तप से, तेएणं - तेज से, तवतेयसिरीए - तप तेज की शोभा से, अईव अईव - बहुत बहुत, उवसोभेमाणी - शोभित हो रही थी। . भावार्थ - इस प्रकार महान् तपस्या से काली आर्यिका का शरीर प्रायः मांस और रक्त से रहित हो गया। उनके शरीर की धमनियाँ (नाड़ियाँ) प्रत्यक्ष दिखाई देने लगी। वह सूख कर अस्थिपञ्जर (हड्डियों का. ढाँचा) मात्र शेष रह गई। उठते, बैठते, चलते, फिरते, उनके शरीर की हड्डियों से 'कड़कड़' शब्द होता था। जिस प्रकार सूखे काष्ठों से या सूखे पत्तों से अथवा कोयलों से भरी हुई चलती गाड़ी से ध्वनि होती है, उसी प्रकार उसके शरीर की हड्डियों से भी ध्वनि होने लग गई। यद्यपि श्री काली आर्या का शरीर मांस और रक्त के सूख जाने के कारण रूक्ष हो गया. था, तथापि भस्म से आच्छादित अग्नि के समान तप-तेज की शोभा से अत्यन्त शोभित हो रहा था। विवेचन - प्रस्तुत सूत्र में काली आर्या की दीर्घ तपस्या के बाद शारीरिक स्थिति का वर्णन किया गया है। - "इंगालसगडी वा जाव सुहुय हुयासणे' से अनुत्तरोपपातिक सूत्र में वर्णित धन्ना अनगार के शरीर के अंगोपांगों की भलामण दी गई है। तप के कारण काली आर्या का शरीर अस्थिपंजर मात्र रह गया था किंतु तप तेज की शोभा से वह बहुत शोभित हो रही थी। कमलकोमल राजरानियाँ जिन्होंने सूर्यधूप की अनुभूति नहीं की, भूख-प्यास एवं सर्दी गर्मी का परिचय नाम जानने तक ही सीमित था। दूध से कुल्ले करने वाली काली आर्या सरीखी Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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