Book Title: Antkruddasha Sutra
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 215
________________ बीयं अज्झायणं - द्वितीय अध्ययन सुकाली आर्या (८९) उक्खेवओ बीयस्स अज्झयणस्स। एवं खलु जंबू! तेणं कालेणं तेणं समएणं चंपा णामं णयरी। पुण्णभद्दे चेइए, कोणिए राया। तत्थ णं सेणियस्स रण्णो भज्जा कोणियस्स रण्णो चुल्लमाउया सुकाली णामं देवी होत्था। जहा काली तहा . सुकाली वि णिक्खंता जाव बहूहिं चउत्थ जाव अप्पाणं भावेमाणी विहरइ॥ भावार्थ - जम्बू स्वामी ने श्री सुधर्मा स्वामी से पूछा - 'हे भगवन्! आठवें वर्ग के दूसरे अध्ययन का क्या भाव है?' सुधर्मा स्वामी ने कहा - "हे जम्बू! उस काल उस समय चम्पा नाम की नगरी थी। वहाँ पूर्णभद्र नाम का चैत्य था। कोणिक राजा राज करते थे। श्रेणिक राजा की भार्या और कोणिक राजा की छोटी माता 'सुकाली' रानी थी। जिस प्रकार काली रानी प्रव्रजित हुई थी, उसी प्रकार सुकाली रानी भी प्रव्रजित हुई और बहुत-से उपवास, बेला, तेला आदि तपस्या करती हुई विचरने लगी।" कनकावली तप की आराधना व सिद्धि (६०) तए णं सा सुकाली अज्जा अण्णया कयाई जेणेव अज्जचंदणा अज्जा जाव इच्छामि णं अज्जाओ! तुन्भेहिं अब्भणुण्णाया समाणी कणगावली तवोकम्म उवसंपज्जित्ताणं विहरित्तए। एवं जहा रयणावली तहा कणगावली वि, णवरं तिसु ठाणेसु अट्ठमाई करेइ, जहा रयणावलीए छट्ठाई। एक्काए परिवाडिए संवच्छरो पंच Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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