________________
वर्ग ६ अध्ययन १ - मकाई गाथापति *ake************ edeitiessesktakeketstakeketakk
a kakakakkeketattatreet
११७
इसके उत्तर में श्री सुधर्मा स्वामी ने कहा -
मकाई गाथापति एवं खलु जंबू! तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे णयरे, गुणसिलए चेइए, सेणिए राया। तत्थ णं मकाई * णाम गाहावई परिवसइ, अड्ढे जाव अपरिभूए।
भावार्थ - हे जम्बू! उस काल उस समय में राजगृह नामक नगर था। वहाँ गुणशीलक नामक चैत्य (उद्यान) था। उस नगर में श्रेणिक राजा राज करते थे। उस नगर में मकाई (मंकाई) नाम का एक गाथापति रहता था, जो अत्यन्त समृद्ध और दूसरों से अपराभूत था।
मकाई अनगार बने तेणं कालेणं तेणं समएणं समणे भगवं महावीरे आइगरे जाव गुणसिलए जाव विहरइ। परिसा णिग्गया। तए णं से मकाई गाहावई इमीसे कहाए लद्धढे जहा पण्णत्तीए, गंगदत्ते तहेव, इमोवि जेट्टपुत्तं कुटुंबे ठवित्ता, पुरिससहस्सवाहिणीए सीयाए णिक्खंते जाव अणगारे जाए ईरियासमिए जाव गुत्तबंभयारी। ____ भावार्थ - उस काल उस समय में धर्म की आदि करने वाले श्रमण भगवान् महावीर स्वामी गुणशीलक उद्यान में पधारे। भगवान् का आगमन सुन कर परिषद् दर्शन करने के लिए निकली। मंकाई गाथापति भी भगवती सूत्र में वर्णित गंगदत्त के समान भगवान् के दर्शनार्थ निकला। भगवान् ने धर्मोपदेश दिया, जिसे सुन कर मकाई गाथापति के हृदय में वैराग्य-भाव उत्पन्न हो गया। उसने घर आ कर अपने ज्येष्ठ-पुत्र को कुटुम्ब का भार सौंपा और हजार मनुष्यों से उठाई जाने वाली शिविका पर बैठ कर दीक्षा लेने के लिए भगवान् के पास आये, यावत् वे अनगार हो गये। . .
विवेचन - 'जहा पण्णत्तीए गंगदत्ते' - भगवती सूत्र शतक १६ उद्देशक ५ में वर्णित गंगदत्त श्रावक के समान मकाई गाथापति शरीर को अलंकृत करके पैदल ही भगवान् महावीर स्वामी के दर्शनार्थ गये। भगवान् को वंदन नमस्कार कर पर्युपासना करने लगे। धर्मकथा
* पाठान्तर - मंकाई
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org