________________
वर्ग ६ अध्ययन ३ - श्रेणिक की उद्घोषणा
१२६ 來來來來來**************************來**********************************
राजा श्रेणिक उन दैविक-शक्ति का कुछ भी प्रतिकार नहीं कर सके। घोषणा करवाने से ज्यादा वे कुछ करने की स्थिति में नहीं रहे थे।
दूसरे स्थानों से राजगृह आने वाले, राजगृह से भूले-भटके जाने वाले सात मनुष्य मुद्गरपाणि को मिल ही जाते थे। ____मान प्रशंसा के भूखे मुद्गरपाणि यक्ष को अर्जुन ने आह्वान किया, तो वह उन सात जीवों को मार कर ही तृप्त नहीं हुआ। मेरी धाक जम जानी चाहिए, आइंदा कोई मेरी प्रतिमा को केवल काष्ट समझ कर निर्भक्ति नहीं हो जाय, अतः मुझे अपना सिक्का जमाना है, ऐसे ही कुछ मनोभावों से यक्ष अर्जुन की देह में जमा रहा एवं राजगृह को उद्वेलित करता रहा। ____ 'इस विशाल नर-वध के लिए कौन कितने पाप का भागी बना?' यह प्रश्न बड़ा ही जटिल एवं सूक्ष्म है। मनमाने व्यवहार की छूट राजा ने भले ही दे दी थी, पर जनता ने गोठीले पुरुषों का निग्रह नहीं किया, अतः अमुक अंशों में राजगृह की जनता भी इस क्रिया में भागीदार बनती है। अर्जुन एवं यक्ष दोनों में से अधिक पाप का बन्ध किसने किया? इसका निश्चय करने के वास्तविक साधन तो हमारे पास नहीं हैं। - अर्जुन ने देव को आह्वान् करके बुलाया था, देव अर्जुन के शरीर से सारे पाप कर रहा था, पर साथ ही बुलाने के बाद अर्जुन स्वतंत्र नहीं था। पूजा, भक्ति का भूखा देव व्यर्थ ही मनुष्यों को मार-मार कर अपना आतंक जमाने की चेष्टा कर रहा था। ... कुछ भी हो, पर-स्त्री के रसिकों की यह दुर्गति बड़ी दयनीय एवं शिक्षाप्रद है। लोग रास्ते चलते पराई स्त्रियों की ताक-झांक करते हैं, उसके रूप-सौन्दर्य को देख कर मन में दुर्भाव भी लाते हैं, पर उनका यह चिन्तन व्यर्थ है, क्योंकि उन्हें वह प्राप्त नहीं होगी। अगले कुछ क्षणों में आँखों से ओझल हो जायेगी, जिसे शायद ही कभी वापिस देखने का काम पड़े। यह अनर्थदण्ड कितना भयंकर है? पूज्य श्री जयमलजी म. सा. फरमा गए हैं -
'कुलवंती जाय चली, कोई करे ज माठी चाय रे। विगर मिल्यां बिन भोगव्यां, मरने दुर्गति जाय रे॥
जीवड़ला दुलहो मानव भव कांई हारे॥' ठोकर लगने वाले को दर्द होता है, समझदार अपने को उस ठोकर के स्थान पर संभाल लेते हैं। पराई पूनियों से कातना सीखने को मिल जाय तो भी गनीमत है।
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org