Book Title: Antkruddasha Sutra
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 191
________________ १६६ अन्तकृतदशा सूत्र ***************京**********本本来来来来来来来来来来 किए जाये।' इस भावना से बालक की इच्छा हुई। पर बिना पूछे जाना ठीक नहीं। बालक ने विनय पूर्वक साथ चलने की इच्छा व्यक्त की तो गौतम स्वामी ने निषेध नहीं किया। जिस समय क्रीड़ा स्थल से गौतम स्वामी के पास आये थे तब तो वंदन-विधि का ज्ञान नहीं होने से गौतम स्वामी को वंदना नहीं की थी, पर अब माताजी द्वारा गौतम स्वामी को की गई वंदना देखकर बुद्धिमान् बालक ने उसी विधि से महावीर स्वामी को वंदन-नमस्कार किया · तथा सेवा करने लगा। पात्र के योग्य भिक्षा-दाता का गुण माना गया है, तो धर्मोपदेशक की विशेषता श्रोता के योग्य उपदेश देने से होती है। इन्द्रभूति गौतम आदि दिग्गज पंडितों से जो उच्चस्तरीय चर्चाएं हुईं, वे ऊँचे तत्त्व की बातें बालक अतिमुक्तक की पहुंच से बाहर थी, अतः भगवान् ने सरल शब्दों · में धर्म-तत्त्व का ऐसा अनुपम व्याख्यान किया कि बालक दीक्षित होने के लिए लालायित हो उठा। भगवान् सरीखे वर्षालु बादल हों और अतिमुक्तक जैसी उर्वर भूमि, फिर योग्य समय पर डाले गये धर्म-बीजों की निष्पत्ति कैसे नहीं होती? भगवान् का अमृतमय उपदेश सुनकर बालक हर्षित हो गया। दीक्षा की आज्ञा हेतु माता-पिता से चर्चा (८०) तए णं से अइमुत्ते कुमारे जेणेव अम्मापियरो तेणेव उवागए जाव पव्वइत्तए। अइमुत्तं कुमारं अम्मापियरो एवं वयासी - "बाले सि ताव तुमं पुत्ता! असंबुद्धेसि तुमं पुत्ता! किण्णं तुमं जाणासि धम्मं?" कठिन शब्दार्थ - बालेसि - बच्चे हो, असंबुद्धेसि - असंबुद्ध - तत्त्वज्ञान से रहित हो, किण्णं - कैसे, जाणासि - जानोगे, धम्म - धर्म को। भावार्थ - अतिमुक्तक कुमार अपने माता-पिता के पास आ कर इस प्रकार कहने लगे - 'हे माता-पिता! आपकी आज्ञा होने पर मैं श्रमण-भगवान् महावीर स्वामी से दीक्षा लेना चाहता हूँ।' माता-पिता ने कहा - 'हे पुत्र! तुम अभी बच्चे हो। तुम्हें तत्त्वों का ज्ञान नहीं है। हे पुत्र! तुम धर्म को कैसे जान सकते हो?' . Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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