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अन्तकृतदशा सूत्र ***************************************************************
भावार्थ - जम्बू स्वामी ने फिर पूछा - 'हे भगवन्! आठवें वर्ग के दस अध्ययनों में से पहले अध्ययन में भगवान् ने क्या भाव कहे हैं?'
___ काली द्वारा प्रव्रज्या ग्रहण एवं खलु जंबू! तेणं कालेणं तेणं समएणं चंपा णामं णयरी होत्था। पुण्णभद्दे चेइए। कोणिए राया। तत्थ णं चंपाए णयरीए सेणियस्स रण्णो भज्जा कोणियस्स रणो चुल्लमाउया काली णामं देवी होत्था, वण्णओ। जहा णंदा जाव सामाइयमाइयाई एक्कारस अंगाई अहिज्जइ, बहूहिं चउत्थछट्टमेहिं जावं अप्पाणं भावेमाणे विहरइ।
कठिन शब्दार्थ - भज्जा - भार्या, चुल्लमाउया - लघुमाता।
भावार्थ - सुधर्मा स्वामी ने कहा - 'हे. जम्बू! उस काल उस समय चम्पा नाम की नगरी थी। वहाँ पूर्णभद्र नाम का उद्यान था। कोणिक राजा राज करता था। श्रेणिक राजा की रानी एवं कोणिक राजा की लघुमाता 'काली' देवी थी। काली देवी ने नन्दा रानी के समान श्रमण भगवान् महावीर स्वामी के समीप दीक्षा ले कर सामायिक आदि ग्यारह अंगों का अध्ययन किया। वह उपवास, बेला, तेला आदि बहुत-सी तपस्याएँ करती हुई विचरने लगी।
विवेचन - सातवें वर्ग में वर्णित तेरह रानियां श्रेणिक महाराज की मौजूदगी में दीक्षित हुई थी। कोणिक महाराज द्वारा श्रेणिक महाराज को कारागृह में रखा गया था। माता चेलना द्वारा समझाए जाने पर वे गए तो थे पिता के बंधन काटने पर श्रेणिक ने समझा कि यह मुझे मारने आया है अतः वे अपनी अंगुली में रहे तालपुट जहर का सेवन कर गए।
पिता की मृत्यु का कोणिक को इतना पश्चात्ताप हुआ कि सजगृही में उनका मन नहीं लगा। वे मगध की राजधानी राजगृही को छोड़ कर चले गये और अंग देश की राजधानी चंपा में जा कर वहीं से राज्य का संचालन करने लगे। इस बीच हार हाथी को लेकर वेहल्लकुमार ननिहाल चले गए। वे कोणिक के सगे छोटे भाई थे। इस निमित्त से दस भाइयों के सहयोग से कोणिक महाराज ने अपने नाना चेड़ा राजा के विरुद्ध घमासान युद्ध किया। चेड़ा महाराज द्वारा प्रतिदिन काल, सुकाल, महाकाल, कृष्ण, सुकृष्ण, महाकृष्ण, वीरकृष्ण, रामकृष्ण, पितृसेनकृष्ण और महासेनकृष्ण एक के बाद एक क्रमशः दस कुमार मारे गए।
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