Book Title: Antkruddasha Sutra
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

View full book text
Previous | Next

Page 203
________________ अन्तकृतदशा सूत्र **************************************************中**** ****** , करो, किन्तु धर्मसाधना में प्रमाद मत करो।' आर्या चन्दनबाला की आज्ञा ले कर काली आर्या रत्नावली तप करने लगी। प्रथम परिपाटी तं जहा - चउत्थं करेइ, करित्ता सव्वकामगुणियं पारेइ, पारित्ता छटुं करेइ, करित्ता सव्वकामगुणियं पारेइ, पारित्ता अट्ठमं करेइ, करित्ता सव्वकामगुणियं पारेइ, पारित्ता अट्ट छट्ठाई करेइ, करित्ता सव्वकामगुणियं पारेइ, पारित्ता चउत्थं करेइ, करित्ता सव्वकामगुणियं पारेइ, पारित्ता छटुं करेइ, करित्ता सव्वकामगुणियं पारेइ, पारित्ता अट्ठमं करेइ, करित्ता सव्वकामगुणियं पारेइ, पारित्ता दसमं करेइ, करित्ता सव्वकामगुणियं पारेइ, पारित्ता दुवालसमं करेइ, करित्ता सव्वकामगुणियं पारेइ, पारित्ता चोद्दसमं करेइ, करित्ता सव्वकामगुणियं पारेइ, पारित्ता सोलसमं करेइ, करित्ता सव्वकामगुणियं पारेइ, पारित्ता अट्ठारसमं करेड़, करित्ता सव्वकामगुणियं पारेइ, पारित्ता वीसइमं करेइ, करित्ता सव्वकामगुणियं पारेइ, पारित्ता बावीसइमं करेइ, करित्ता सव्वकामगुणियं पारेइ, पारित्ता चउवीसइमं करेइ, करित्ता सव्वकामगुणियं पारेइ, पारित्ता छव्वीसइमं करेइ, करित्ता सव्वकामगुणियं पारेइ, पारित्ता अट्ठावीसइमं करेइ, करित्ता सव्वकामगुणियं पारेइ, पारित्ता तीसइमं करेइ, करित्ता सव्वकामगुणियं पारेइ, पारित्ता बत्तीसइमं करेइ, करित्ता सव्वकामगुणियं पारेइ, पारित्ता चोत्तीसइमं करेइ, करित्ता सव्वकामगुणियं पारेइ, पारित्ता चोत्तीसं छट्ठाई करेइ, करित्ता सव्वकामगुणियं पारेइ, पारित्ता। कठिन शब्दार्थ - चउत्थं - चतुर्थ भक्त - उपवास, सव्वकामगुणियं - सर्वकाम गुणित, पारेइ - पारणा किया, पारित्ता - पारणा करके, छटुं - षष्ठ भक्त - बेला, अट्ठमं - अष्टमभक्त-तेला, अट्ठ छट्ठाई - आठ बेले, दसमं - चोला, दुवालसमं - पचोला, चोद्दसमंछह, सोलसमं - सात, अट्ठारसमं - आठ, वीसइमं - नौ, बावीसइमं - दस, चउवीसइमंग्यारह, छव्वीसइमं - बारह, अट्ठावीसइमं - तेरह, तीसइमं - चौदह, बत्तीसइमं - पन्द्रह, चोत्तीसइमं - सोलह, चोत्तीसं - चौतीस। . भावार्थ - काली आर्या ने रत्नावली तप इस प्रकार किया - पहले उपवास किया और Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 201 202 203 204 205 206 207 208 209 210 211 212 213 214 215 216 217 218 219 220 221 222 223 224 225 226 227 228 229 230 231 232 233 234 235 236 237 238 239 240 241 242 243 244 245 246 247 248 249 250 251 252 253 254