Book Title: Antkruddasha Sutra
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 202
________________ वर्ग ८ अध्ययन १ - रत्नावली तप की आराधना १७७ ******************************************************************* श्रमण भगवान् महावीर स्वामी से काली आदि रानियां अपने पुत्रों के विषय में पूछती है कि - 'हे भगवन्! हमारे पुत्र जो युद्ध में गये उनको हम जीवित देख पाएंगी या नहीं?' ___ भगवान् महावीर स्वामी ने 'पुत्र वध जान कर संयम लेगी' इसलिए उनकी मृत्यु का संवाद दिया। इस आठवें वर्ग की वह कालावधि है जब श्रेणिक महाराज नहीं थे। महाशिलाकंटक एवं रथमूसल संग्राम ने लाखों सुभटों को लील लिया था। दसों रानियों ने आत्म-संग्राम में विजय पाने के लिए जो भीम भैरव तपोनुष्ठान किए, वे इस वर्ग में वर्णित हैं। चेलना रानी कोणिक की माता थी। काली रानी का विवाह बाद में होने से वे कोणिक की छोटी माता कही गई है। वे भी राजगृही से चम्पा नगरी में आकर रहने लगी थी। काल नामक उनके पुत्र युद्ध में गए हुए थे। काल की मृत्यु का संवाद सुनने पर कोणिक महाराज से आज्ञा प्राप्त कर नंदा के समान अत्यंत वैराग्य भाव के साथ काली रानी दीक्षित हुई। ग्यारह अंगों का अध्ययन किया। बहुत से उपवास बेले तेले आदि करके संयम तप से आत्मा पर रहे हुए कर्मदलिकों को धुन रही थी। .... रत्नावली तप की आराधना ... (८६) - तए णं सा काली अज्जा अण्णया कयाई जेणेव अज्जचंदणा अज्जा तेणेव उवागया, उवागच्छित्ता. एवं वयासी - "इच्छामि णं अज्जाओ! तुब्भेहिं अब्भणुण्णाया समाणी रयणावलिं तवोकम्मं उवसंपज्जित्ताणं विहरित्तए।" "अहासुहं देवाणुप्पिया! मा पडिबंधं करेह।" तए णं सा काली अज्जा अज्जचंदणाए अब्भणुण्णाया समाणी रयणावलिं तवोकम्मं उवसंपज्जित्ताणं विहरइ। कठिन शब्दार्थ - काली अज्जा - काली आर्या, अज्जचंदणा - आर्य चंदनबाला, रयणावलिं - रत्नावली, तवोकम्मं - तप कर्म। भावार्थ - एक दिन वह काली आर्या, आर्य चन्दनबाला आर्या के पास आई और हाथ जोड़ कर विनय पूर्वक बोली - 'हे पूज्या! आपकी आज्ञा हो, तो मैं रत्नावली तप करना चाहती हूँ।' तब चन्दनबाला आर्या ने उत्तर दिया - 'हे देवानुप्रिय! जिस प्रकार तुम्हें सुख हो, वैसा Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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