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अन्तकृतदशा सूत्र 来来来来来来来来来来来来来来来来来来来来来来来来来来来来来来来来来来来来来来来来来来来来来来*************
एवं खलु जंबू! तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे णयरे, गुणसिलए चेइए, सेणिए राया वण्णओ। तस्स णं सेणियस्स रण्णो णंदा णामे देवी होत्था, वण्णओ, सामी समोसढे। परिसा णिग्गया। तए णं सा गंदा देवी इमीसे कहाए लट्ठा समाणा जाव हट्टतुट्ठा कोडुंबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावित्ता, जाणं दुरूहइ, जहा पउमावई जाव एक्कारस अंगाई अहिज्जित्ता वीसं वासाइं परियाओ जाव सिद्धा।
. भावार्थ - सुधर्मा स्वामी ने कहा - हे जम्बू! उस काल उस समय राजगृह नाम का नगर था। उसके बाहर गुणशीलक उद्यान था। वहाँ श्रेणिक राजा राज करता था। उसकी रानी का नाम नन्दा था। किसी समय वहाँ श्रमण भगवान् महावीर स्वामी पधारे। परिषद् वंदन के लिए निकली। भगवान् का आगमन सुन कर महारानी नन्दा अत्यन्त हृष्ट-तुष्ट एवं प्रसन्न हुई। उसने सेवक पुरुषों को बुलाया और धर्म रथ सजा कर जाने की आज्ञा दी। धर्म-रथ पर आरूढ़ हो कर नंदा रानी भी पद्मावती रानी के समान भगवान् को वंदन करने गई। भगवान् ने धर्म-कथा कही, जिसे सुन कर उसे वैराग्य भाव उत्पन्न हुआ। महाराजा श्रेणिक की आज्ञा ले कर उसने भगवान् से दीक्षा अंगीकार की। ग्यारह अंगों का अध्ययन कर बीस वर्ष तक संयम का पालन किया और सिद्ध हो गई। एवं तेरस वि णंदागमेण णेयव्वाओ णिक्खेवओ॥
॥सत्तमो वग्गो समत्तो॥ कठिन शब्दार्थ - णंदागमेण - नंदा के अनुसार, णेयव्वाओ - जानने चाहिये, णिक्खेवओ - निक्षेपक - उपसंहार।
भावार्थ - इसी प्रकार नन्दवती आदि बारह अध्ययनों का भाव जानना चाहिए। . हे जम्बू! श्रमण-भगवान् महावीर स्वामी ने सातवें वर्ग के भाव इस प्रकार कहे हैं।
विवेचन - श्रेणिक महाराज की तेरह ही भार्याओं ने दीक्षा ली। ग्यारह अंगों का अध्ययन किया। खूब तपस्याएं की। बीस वर्ष संयम पर्याय का पालन कर तेरह ही रानियाँ मोक्ष गई।
॥ सातवें वर्ग के तेरह अध्ययन समाप्त।
॥ इति सातवां वर्ग समाप्त।
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