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सोलसमं अज्डायणं - सोलहवां अध्ययन
अलक्ष
(८२) उक्खेवओ सोलमस्स अज्झयणस्स। एवं खलु जंबू! तेणं कालेणं तेणं समएणं वाणारसिए णयरीए, काममहावणे चेइए तत्थ णं वाणारसिए अलक्खे णामं राया होत्था।
कठिन शब्दार्थ - उक्खेवओ - उत्क्षेपक - प्रारंभ, काममहावणे चेइए - काम महावन नामक उद्यान।
भावार्थ - जम्बू स्वामी ने श्री सुधर्मा स्वामी से पूछा - 'हे भगवन्! श्रमण-भगवान् महावीर स्वामी द्वारा प्ररूपित छठे वर्ग के पन्द्रहवें अध्ययन का भाव मैंने आपके श्रीमुख से सुना। अब कृपा कर के सोलहवें अध्ययन के भाव कहें।' श्री. सुधर्मा स्वामी ने कहा - 'हे जम्बू! उस काल उस समय में वाणारसी नाम की नगरी थी। वहाँ काममहावन नामक उद्यान था। अलक्ष नाम का राजा राज़ करता था।'
अलक्ष राजा द्वारा भगवान् की पर्युपासना तेणं कालेणं तेणं समएणं समणे भगवं महावीरे जाव विहरइ। परिसा णिग्गया। तए णं अलक्खे राया इमीसे कहाए लद्धठे समाणे हट्टतुट्ट जहा कूणिए जाव पज्जुवासइ, धम्म-कहा। ___ कठिन शब्दार्थ - पज्जुवासइ - पर्युपासना करते हैं. धम्म-कहा - धर्मकथा।
भावार्थ - उस काल उस समय में. श्रमण-भगवान् महावीर स्वामी वाणारसी, नगरी के बाहर काममहावन उद्यान में पधारे। परिषद् वंदन करने गई। महाराज अलक्ष भी कोणिक राजा के समान भगवान् को वन्दन करने को गये। वन्दन-नमस्कार कर भगवान् की सेवा करने लगे। भगवान् ने धर्म-कथा कही।
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