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अन्तकृतदशा सूत्र **************************************************** बहुत वर्षों तक श्रमण-पर्याय का पालन किया तथा गुणरत्न संवत्सर आदि तपस्या की। अन्त में संथारा कर के विपुलगिरि पर सिद्ध हुए। ---
. विवेचन - श्री भगवती सूत्र शतक ५ उ० ४ में अतिमुक्तक कुमार श्रमण का कतिपय वर्णन इस प्रकार है -
'भगवान् महावीर स्वामी के अतिमुक्तक नामक कुमार श्रमण प्रकृति के भद्र यावत् विनीत थे। एक बार वर्षा होने के बाद रजोहरण व पात्र लेकर शौच निवृत्ति हेतु गए। .. . ___वहां मार्ग में एक नाला बह रहा था, उन्होंने उस नाले के पानी को पाल बांधकर रोक लिया तथा अपना पात्र पानी में छोड़ कर 'मेरी नाव तिरे, मेरी नाव तिरे' इस प्रकार वचन कहते हुए वहाँ खेलने लगे। स्थविर मुनियों ने बाल मुनि की क्रीड़ा देखकर भगवान् से आकर पूछा - ‘अतिमुक्तक कितने भव करके मुक्त होंगे?' ____ भगवान् ने स्थविरों के मनोभाव जान कर फरमाया - ‘अतिमुक्तक प्रकृति का भद्र यावत् विनीत है, यह चरम शरीरी है। इसी भव में सिद्ध बुद्ध और मुक्त होगा। आप इसकी हीलना, निंदा, गर्दा एवं अवमानना नहीं करें। संयम समाचारी का बोध नहीं होने के कारण ही तुम अग्लान भाव से अतिमुक्तक कुमार श्रमण को स्वीकार करो, उसकी सहायता करो तथा आहार पानी के द्वारा विनय पूर्वक वैयावृत्य करो।' स्थविर मुनियों ने भगवान् को वंदना नमस्कार किया एवं निर्देशानुसार कुमार श्रमण को अग्लान भाव से स्वीकार कर वैयावृत्य करने लगे।
__ अतिमुक्तक मुनि ने पहले आवश्यक सूत्र के प्रथम आवश्यक रूप सामायिक आदि छह आवश्यक सीखे फिर आचारांग से विपाक पर्यन्त ग्यारह अंगों का अध्ययन किया। भिक्षु की बारह प्रतिमाएं और सोलह महीनों में पूरे होने वाले गुणरत्न संवत्सर तप का आराधन किया। बहुत वर्षों तक संयम पर्याय पाली यावत् विपुल पर्वत पर सिद्ध, बुद्ध, मुक्त हुए।
॥ छठे वर्ग का पन्द्रहवाँ अध्ययन समाप्त॥
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