Book Title: Antkruddasha Sutra
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 189
________________ १६४ अन्तकृतदशा सूत्र . 來水本來来来来来来来来来来来来来来来来来來來來來來來來來样本+本來來來來來來來來來來來來來 कठिन शब्दार्थ - परिवसह - रहते हो, धम्मायरिए - धर्माचार्य, धम्मोवएसए - धर्मोपदेशक, अहापडिग्गह उग्गहं - यथापरिग्रह अवग्रह - कल्पानुसार मुनि को जिस प्रकार ग्रहण करना चाहिये, उसी प्रकार अवग्रह। भावार्थ - इसके बाद अतिमुक्तक कुमार ने भगवान् गौतम स्वामी से इस प्रकार पूछा - 'हे भगवन्! आप कहाँ रहते हैं?' गौतम स्वामी ने कहा - 'हे देवानुप्रिय! मेरे धर्माचार्य धर्मोपदेशक धर्म की आदि के करने वाले यावत् मोक्ष के कामी श्रमण भगवान् महावीर स्वामी इस पोलासपुर नगर के बाहर श्रीवन उद्यान में कल्पनानुसार अवग्रह ले कर तप-संयम से आत्मा को भावित करते हुए विराजते हैं। मैं वहीं उन्हीं के पास रहता हूँ।' विवेचन - अत्यंत निकट के उपकारी गुरु, जिनके वैराग्य वर्द्धक वचन वैराग्य जगाते हैं, संयम देने वाले, बड़ी दीक्षा देने वाले, समिति गुप्ति सिखाने वाले, सारणा वारणा करने वाले आदि सभी जीवन निर्माण के कारक गुरु को धर्माचार्य धर्मोपदेशक कहा गया है। यद्यपि गौतमस्वामी उस समय अकेले थे तथापि पहले भी बहुवचन में उत्तर दिया था कि हम श्रमण निग्रंथ हैं यानी मैं और मेरे जैसे साधु हैं। यहां भी बहुवचन में उत्तर है कि हम उनके पास रहते हैं यानी मैं और मेरे जैसे शिष्य उनकी छत्र छाया में रहते हैं - यह भगवान् गौतमस्वामी की विनयवृत्ति है। . ____तए णं से अइमुत्ते कुमारे भगवं गोयमं एवं वयासी - “गच्छामि णं भंते! अहं तुन्भेहिं सद्धिं समणं भगवं महावीरं पायवंदए?" "अहासुहं देवाणुप्पिया!" भावार्थ - यह सुन कर अतिमुक्तक कुमार ने कहा - 'हे भगवन्! मैं भी आपके साथ, भगवान् को वन्दन करने के लिए चलूँ?' गौतम स्वामी ने कहा - 'हे देवानुप्रिय! जैसा तुम्हें सुख हो, वैसा करो।' विवेचन - 'ये इतने ऊंचे हैं तो इनके गुरु कितने ऊंचे होंगे, मुझे उनके भी दर्शन करने चाहिए" - इस भावना को लेकर अतिमुक्तक कुमार ने भगवान् गौतमस्वामी से कहा - 'अगर आपको एतराज न हो तो मैं आपके साथ चल कर श्रमण भगवान् महावीर स्वामी की चरण वंदना करना चाहता हूं।' Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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