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कठिन शब्दार्थ - अभीए - भयभीत नहीं हुए, अन्
त्रास को प्राप्त नहीं हुए, अणुव्विग्गे - उद्विग्न नहीं हुए, अक्खुभिए - श्रोभ को प्राप्त नहीं हुए, अचलिए अचलित मन चलायमान नहीं हुआ, असंभंते संभ्रान्त नहीं हुआ - पूर्व निर्णय पर पश्चात्ताप नहीं किया, योगों को नियंत्रण में रखा, वत्थंतेणं - कपड़े के छोर से, भूमिं - भूमि को, पमज्जइ - प्रमार्जित किया, थूलए - स्थूल, सव्वं
समस्त, एत्तो - इस, उवसग्गाओ
कल्पता है, पात्त
पारना,
उपसर्ग से, मुच्चिस्सामि सागारं - सागार - आगार सहित ।
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अन्तकृतदशा सूत्र
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मुक्त हो जाऊंगा, कप्पड़
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भावार्थ - मुद्गरपाणि यक्ष को अपनी ओर आता हुआ देख कर सुदर्शन सेठ जरा भी भय, त्रास, उद्वेग और क्षोभ को प्राप्त नहीं हुए। उनका हृदय जरा भी विचलित और संभ्रान्त नहीं हुआ । उन्होंने निर्भय हो कर अपने वस्त्र के अंचल से भूमि का प्रमार्जन किया और मुख पर उत्तरासंग धारण किया, फिर पूर्व दिशा की ओर मुँह कर के बाँए घुटने को ऊँचा किया और दोनों हाथ जोड़ कर मस्तक पर अंजलि पुट रखा। इसके बाद इस प्रकार बोले- 'नमस्कार हो उन अरहन्तों को जो मोक्ष में पधार गये हैं और नमस्कार हो श्रमण भगवान् महावीर स्वामी को जो मोक्ष में पधारने वाले हैं। मैंने पहले भगवान् महावीर स्वामी से स्थूल प्राणातिपात, स्थूल मृषावाद और स्थूल अदत्तादान का त्याग किया। स्वदार - संतोष और इच्छा परिमाण (स्थूल परिग्रह त्याग) अणुव्रतों को.. धारण किया था। अब इस समय उन्हीं भगवान् महावीर स्वामी की साक्षी से यावज्जीवन प्राणातिपात का सर्वथा त्याग करता हूँ। इसी प्रकार मृषावाद, अदत्तादान, मैथुन और परिग्रह का यावज्जीवन के लिए त्याग करता हूँ और क्रोध, मान, माया तथा लोभ यावत् मिथ्यादर्शनशल्य तक अठारह पापों का यावज्जीवन के लिए सर्वथा त्याग करता हूँ। अशन, पान, खादिम और स्वादि इन चारों प्रकार के आहार का भी यावज्जीवन त्याग करता हूँ।'
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'यदि मैं इस उपसर्ग से बच जाऊँ, तो त्याग पार लूँगा, अन्यथा उपरोक्त त्याग यावज्जीवन के लिए है' - ऐसा निश्चय कर के सुदर्शन सेठ ने सागारी अनशन धारण कर लिया ।
तए णं से मोग्गरपाणी जक्खे तं पलसहस्सणिप्फण्णं अयोमयं मोग्गरं उल्लालेमाणे उल्लालेमाणे जेणेव सुदंसणे समणोवासए तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता णो चेव णं संचाएइ सुदंसणं समणोवासं तेयसा समभिपडित्तए ।
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