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अन्तकृतदशा सूत्र a kakakakakaka k akakakakakak*****
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अर्जुनमाली की भावना
(७०) तए णं से अज्जुणए मालागारे तओ मुहुत्तंतरेणं आसत्थे समाणे उद्वेइ, उद्वित्ता सुदंसणं समणोवासयं एवं वयासी - “तुब्भे णं देवाणुप्पिया! के? कहिं वा संपत्थिया?"
कठिन शब्दार्थ - मुहत्तंतरेणं - मुहूर्तभर (कुछ समय) बाद, आसंत्थे - आश्वस्त, संपत्थिया - जा रहे हो।
भावार्थ - वह अर्जुन माली कुछ समय के बाद स्वस्थ हो कर खड़ा हुआ और सुदर्शन श्रमणोपासक से इस प्रकार बोला - 'हे देवानुप्रिय! आप कौन हैं और कहाँ जा रहे हैं।' ..
तए णं से सुदंसणे समणोवासए अज्जुणयं मालागारं एवं वयासी - “एवं खलु देवाणुप्पिया! अहं सुदंसणे णामं समणोवासए अभिगयजीवाजीवे गुणसिलए चेइए समणं भगवं महावीरं वंदिउं संपत्थिए।"
कठिन शब्दार्थ - अभिगयजीवाजीवे - जीवाजीवादि का ज्ञाता, वंदिउं - वंदना करने, संपत्थिए - जा रहा हूं।
भावार्थ - यह सुन कर सुदर्शन श्रमणोपासक ने कहा - 'हे देवानुप्रिय! मैं जीवाजीवादि नौ तत्त्वों का ज्ञाता सुदर्शन नामक श्रमणोपासक हूँ और गुणशीलक उद्यान में पधारे हुए श्रमणभगवान् महावीर स्वामी को वन्दन-नमस्कार करने जा रहा हूँ।'
विवेचन - पांच महीने तेरह दिन तक देव प्रभाव से काया चल रही थी, आहार पानी का काम ही नहीं था। देव मुक्ति के बाद बेहोशी की अवस्था थोड़ी देर रही फिर चेतना का संचार हुआ तब अर्जुनमाली ने सुदर्शन श्रमणोपासक से परिचय और प्रयोजन की जानकारी चाही। भगवान् की पर्युपासना और दीक्षा
(७१) तए णं से अज्जुणए मालागारे सुदंसणं समणोवासयं एवं वयासी - "तं
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