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अन्तकृतदशा सूत्र *kakekakkakkkkk***************kkkkkkkkkkkkkek****************************
भावार्थ - राजगृह नगर के बाहर अर्जुन माली का एक विशाल पुष्पाराम (बगीचा) था। वह बगीचा नीले पत्तों से आच्छादित होने के कारण आकाश में चढ़े हुए घनघोर घटा के समान श्याम कांति से युक्त दिखाई देता था। उसमें पांचों वर्ण के फूल खिले हुए थे। वह हृदय कों प्रसन्न एवं प्रफुल्ल करने वाला एवं दर्शनीय था।
तस्स णं पुप्फारामस्स अदूरसामंते तत्थ णं अजुणयस्स मालागारस्स अजयपजय-पिइपजयागए अणेगकुलपुरिस-परंपरागए मोग्गरपाणिस्स जक्खस्स जक्खाययणे होत्था, पोराणे दिव्वे सच्चे जहा पुण्णभद्दे। तत्थ णं सोग्गरपाणिस्स पडिमा एगं महं पलसहस्सं णिप्फण्णं अयोमयं मोग्गरं गहाय चिट्टइ।.
कठिन शब्दार्थ - अज्जय - पिता, पज्जय - दादा, पिइपज्जयागए - प्रपितामहपरदादा, अणेगकुलपुरिस-परंपरागए - अनेक कुलों-पीढ़ियों के पुरुषों द्वारा परंपरागत रूप से, मोग्गरपाणिस्स जक्खस्स - मुद्गरपाणि यक्ष का, जक्खाययणे - यक्षायतन, पोराणे - प्राचीन, दिव्वे - दिव्य, सच्चे - सत्य, पडिमा - प्रतिमा, पलसहस्सं णिप्फण्णं - एक हजार पल परिमाण भार वाला, अयोमयं - लोहे का, मोग्गरं - मुद्गर। __ भावार्थ - उस पुष्पाराम के समीप ही मुद्गरपाणि नाम के यक्ष का यक्षायतन था, जो अर्जुन माली के पिता, पितामह (दादा), प्रपितामह (परदादा) आदि कुल-परम्परा से सम्बन्धित था। वह पूर्णभद्र के समान पुराना, दिव्य एवं सत्य था। उसमें मुद्गरपाणि यक्ष की प्रतिमा थी। उसके हाथ में एक हजार पल परिमाण भार वाला लोहे का मुद्गर था।
विवेचन - पाणि का अर्थ है हाथ और मुद्गर का अर्थ है गदा। जिसके हाथ में गदा (मुद्गर) है उसका नाम मुद्गरपाणि है। उस मुद्गरपाणि के हाथ में जो लोहे की गदा थी उसका वजन एक हजार पल अर्थात् वर्तमान तोल के अनुसार साढ़े बासठ सेर स्दनुसार लगभग ५६ किलो था।
अर्जुनमाली की यक्ष भक्ति
(६४) तए णं से अजुणए मालागारे बालप्पभिई चेव मोग्गरपाणिजक्खस्स भत्ते यावि होत्था। कल्लाकल्लिं पच्छिपिडगाइं गिण्हइ, गिण्हित्ता रायगिहाओ णयराओ
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