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अन्तकृतदशा सूत्र 来来来来来来来来来来来来*********************来来来来来来来来来来来来来******** श्रवण कर उन्होंने भगवान् से वंदन नमस्कार कर निवेदन किया - 'हे भगवन्! मैं निग्रंथ प्रवचन पर श्रद्धा करता हूं और अपने ज्येष्ठ पुत्र को घर-कुटुम्ब का भार सौंप कर आपके पास दीक्षित होना चाहता हूं।' तदनन्तर घर लौट कर अपने मित्र ज्ञाति, गोत्र बंधुओं को आमंत्रित कर भोजन पानादि से उनका सत्कार सम्मान कर अपने दीक्षित होने का भाव उनके समक्ष प्रकट किया तथा अपने ज्येष्ठ पुत्र को घर का मुखिया बना कर स्वयं दीक्षित हो गये। .
संयम पालन और मोक्ष तए णं से मकाई अणगारे समणस्स भगवओ महावीरस्स तहारूवाणं थेराणं अंतिए सामाइयमाइयाई एक्कारस अंगाई अहिज्जइ। सेसं जहा खंदयस्स, गुणरयणं तवोकम्मं सोलसवासाइं परियाओ, तहेव विपुले सिद्धे। ____ भावार्थ - इसके बाद मकाई अनगार ने श्रमण भगवान् महावीर स्वामी के तथारूप स्थविरों के समीप सामायिक आदि ग्यारह अंगों का अध्ययन किया और स्कन्दकजी के समान गुणरत्न संवत्सर तप का आराधन किया। सोलह वर्ष की दीक्षा-पर्याय का पालन कर के अन्त में स्कन्दकजी के समान विपुलगिरि पर संथारा कर के सिद्ध हुए।
|| छठे वर्ग का प्रथम अध्ययन समाप्त॥
बिइयं अज्झयणं - द्वितीय अध्ययन
किंकम गाथापति
___ (६२) दोच्चस्स उक्खेवओ। किंकमे वि एवं चेव जाव विपुले सिद्धे।
भावार्थ - दूसरे अध्ययन में 'किंकम' गाथापति का वर्णन है। वे भी मकाई के समान ही प्रव्रजित हो कर विपुलगिरि पर सिद्ध हुए।
॥ छठे वर्ग का द्वितीय अध्ययन समाप्त॥
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