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अन्तकृतदशा सूत्र *******************************************************************
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श्वेणिक की उद्घोषणा
(६७) तए णं रायगिहे णयरे सिंघाडग जाव महापहेसु बहुजणो अण्णमण्णस्स एवमाइक्खड़ एवं भासइ एवं पण्णवेइ एवं परूवेइ - एवं खलु देवाणुप्पिया! अजुणए मालागारे मोग्गरपाणिणा जक्खेणं अण्णाइट्टे समाणे रायगिहे बहिया छ इत्थिसत्तमे .. पुरिसे घाएमाणे विहरइ।
भावार्थ - उस समय राजगृह नगर के राजमार्ग आदि सभी स्थलों में बहुत-से व्यक्ति एक-दूसरे से इस प्रकार कहने लगे, विशेष रूप से चर्चा करने लगे, व्याख्या करने लगे, समझाने लगे कि - 'हे देवानुप्रिय! मुद्गरपाणि यक्ष से आविष्ट हो कर अर्जुन माली राजगृह नगर के बाहर एक स्त्री और छह पुरुष, इस प्रकार सात व्यक्तियों को प्रतिदिन मारता है।'...
विवेचन - शंका - अर्जुनमाली के विरुद्ध राजा ने सैन्य बल का प्रयोग किया या मात्र घोषणा ही करवाई?
इसका तर्कसंगत समाधान - आगमों के अक्षर तो सीमित 'सूत्र' रूप होते हैं। किंतु उनके अर्थ (गम) अनन्त होते हैं। उदाहरण के लिए - मात्र पांच पदों का सूत्र ‘नमस्कार मंत्र' में संपूर्ण चौदह पूर्वो का ज्ञान गर्भित है। कहा भी है -
'अनंतर भाव भेद थी भरीली भली, अनन्त, अनन्त नय निक्षेप व्याख्यानी है।
तथा 'सव्व णईणं जा होज्जा बालुया, सव्व उदहीण जा होज्जं सलिलं। एत्तो वि अणंतगुणो, अण्यो एगस्स सुत्तस्स' इत्यादि
इसलिए अर्जुनमाली के विषय में जो वर्णन आता है कि 'राजा ने नगर से बाहर न जाने की घोषणा करवा दी', उससे यह अर्थ भी ध्वनित होता है कि - जब सैन्य बल, बुद्धि बल तथा साम, दाम, दण्ड भेद की नीति आदि से किये गये सारे प्रयत्न भी विफल हो गये तब राजा ने अन्य कोई उपाय न देख ऐसी घोषणा प्रजा की रक्षार्थ विवशता से करवा दी। ___ यह आगमशैली रही है कि - 'आगमकार एक-एक परिस्थिति का पूरा ऊहापोह वहीं गुंथित कर जो सार रूप अंतिम निष्कर्ष होता है, उसे ही उल्लेखित करते हैं, जिससे आगम 'सूत्र' रूप रहे, उसका कलेवर अनावश्यक न बढ़े।
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