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वर्ग ५ अध्ययन १ - पद्मावती आर्या की साधना और मुक्ति १११ ***************************水水水水水水水水水水水水水水水水來來來來來來來來來來來來來來來來
कठिन शब्दार्थ - चउत्थछट्टमदसमदुवालसेहिं - उपवास, बेले, तेले, चोले, पचोले की, मासद्धमासखमणेहिं - अर्द्धमासखमण, मासखमण, विविहेहिं - विविध प्रकार के, तवोकम्मेहिं - तप कर्म से, अप्पाणं - अपनी आत्मा को, भावेमाणा - भावित करती हुई।
भावार्थ - पद्मावती आर्या ने यक्षिणी आर्या के समीप सामायिक आदि ग्यारह अंगों का अध्ययन किया और साथ ही साथ उपवास, बेला, तेला, चोला, पचोला, पन्द्रह-पन्द्रह दिन और महीने-महीने तक की विविध प्रकार की तपस्या करती हुई विचरने लगी।
तए णं सा पउमावई अज्जा बहुपडिपुण्णाई वीसं वासाइं सामण्णपरियागं पाउणित्ता मासियाए संलेहणाए अप्पाणं झोसेइ झोसित्ता सहिँ भत्ताई अणसणाई छेदेइ, छेदित्ता जस्सट्टाए कीरई णग्गभावे जाव तमढं आराहेइ चरमेहिं उस्सासणिस्सासेहिं सिद्धा।
कठिन शब्दार्थ - बहुपडिपुण्णाई - पूरे, वीसं वासाई - बीस वर्षों की, सामण्णपरियागं- श्रमण पर्याय का, पाउणित्ता - पालन करके, मासियाए संलेहणाए - एक मास की संलेखना से, झोसित्ता - झूसित करके, सहि भत्ताई - साठ भक्त, अणसणाई - अनशन का, छेदित्ता- छेदन करके, जस्सट्टाए - जिस अर्थ के लिए, णग्गभावे - नग्नभाव - नंगे पैर चलना आदि, तमढें - उस अर्थ के लिये, चरमेहिं - चरम, उस्सासणिस्सासेहिं - श्वासोच्छ्वास के बाद।
भावार्थ - पद्मावती आर्या ने पूरे बीस वर्ष तक चारित्रपर्याय का पालन किया। अन्त में एक मास की संलेखना की और साठ भक्त अनशन कर के जिस कार्य (मोक्ष प्राप्ति) के लिए संयम लिया था, उसकी आराधना कर के अन्तिम श्वास के बाद सिद्ध पद को प्राप्त किया।
विवेचन - कृष्ण महाराज. ने पद्मावती रानी के लिए युद्ध किया था। पद्मावती रानी कृष्ण महाराज के लिए अत्यन्त प्रीतिपात्र थी, परन्तु पत्थर का कलेजा कर के पद्मावती को संयम स्वीकार करने की तत्क्षण अनुज्ञा दे दी। यदि उन्हें द्वारिका विनाश एवं अपने भविष्य की विस्तृत जानकारी नहीं होती तो शायद वे पद्मावती रानी की मान-मनुहार करते तथा आज्ञा देने में ननुनच भी करते, पर आज आज्ञा मांगते ही मना नहीं किया। उनकी उद्घोषणा 'हाथी के दाँत दिखाने के ओर व खाने के ओर' की तरह नहीं थी कि नागरिक प्रव्रज्या लें तो सहर्ष आज्ञा एवं अपने परिजन लेवें तो तरह-तरह की अन्तराय व बाधाएं।
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