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२-८ अज्झायणाणि पांचवें वर्ग के २-८ अध्ययन
. (५६) २ उक्खेवओ य अज्झयणस्स । तेणं कालेणं तेणं समएणं बारवई णयरी, रेवयए पव्वए, उजाणे णंदणवणे तत्थ णं बारवईए णयरीए कण्हे वासुदेवे राया होत्था। तस्स णं कण्हस्स वासुदेवस्स गोरी देवी वण्णओ, अरहा अरिट्टणेमी समोसढे, कण्हे णिग्गए, गोरी जहा पउमावई तहा णिग्गया, धम्मकहा, परिसा पडिगया, कण्हे वि पडिगए। तए णं सा गोरी जहा पउमावई तहा णिक्खंता जाव सिद्धा।
भावार्थ - श्री जम्बू स्वामी, श्री सुधर्मा स्वामी से पूछते हैं - "हे भगवन्! श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने प्रथम अध्ययन में जो भाव कहे, वे मैंने आपके मुखारविन्द से सुने। इसके बाद भगवान् ने दूसरे अध्ययन में क्या भाव कहे हैं, सो कृपा कर कहिये।" श्री सुधर्मा स्वामी ने कहा - 'हे जम्बू! उस काल उस समय में द्वारिका नाम की नगरी थी। उस नगरी के समीप रैवतक नामक पर्वत था। उस पर्वत पर नन्दन वन नामक एक मनोहर तथा विशाल उद्यान था। द्वारिका नगरी में कृष्ण-वासुदेव राज करते थे। उनके 'गौरी' नाम की रानी थी।
एक समय उस नन्दन वन उद्यान में भगवान् अरिष्टनेमि पधारे। कृष्ण-वासुदेव भगवान् के दर्शन करने के लिए गये। परिषद् भी गई और गौरी रानी भी पद्मावती रानी के समान भगवान् के दर्शन करने के लिए गई। भगवान् ने धर्म-कथा कही। धर्म-कथा सुन कर परिषद् अपने-अपने घर लौट गई और कृष्ण-वासुदेव भी अपने भवन में लौट गए। इनके बाद गौरीदेवी, पद्मावती रानी के समान प्रव्रजित हुई यावत् सिद्ध हो गई।' ___एवं ३ गंधारी ४ लक्खणा ५ सुसीमा ६ जम्बुवई ७ सच्चभामा ८ रुप्पिणी। अट्ठ वि पउमावई सरिसयाओ। अट्ठ अज्झयणा।
भावार्थ - इसी प्रकार गान्धारी, लक्ष्मणा, सुसीमा, जाम्बवती, सत्यभामा और रुक्मिणी का वर्णन समान रूप से जानना चाहिए। पद्मावती आदि आठों रानियाँ एक समान प्रव्रजित हो कर सिद्ध हो गई। ये आठों कृष्ण-वासुदेव की पटरानियाँ थीं।
|| पांचवें वर्ग के २ से ८ अध्ययन समाप्त ॥
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