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अन्तकृतदशा सूत्र
* ** विवेचन - दीक्षाभिलाषिनी पद्मावती को अरहा अरिष्टनेमि प्रभु ने 'करेमि भंते' के पाठ द्वारा सर्व विरति चारित्र रूप प्रव्रज्या देकर प्रव्रजित किया। प्रतिज्ञा का इतना ऊंचा महत्त्व है कि गहने के खाली डिब्बे में मानों चक्रवर्ती की नौ निधियों से भी बेशकीमती आभूषण रख दिए गए हों। शरीर तो पद्मावती रानी का जैसा पहले था वही है पर अब महाव्रत रूपी गहने इसमें रख दिए गए। प्रभु ने पांचों इन्द्रियों और चार कषायों का निग्रह कैसे करना, इसकी विधि समझाई और साध्वी प्रमुखा यक्षिणी आर्या को शिष्या के रूप में दे दी।
सतियों का जीवन निर्माण सहचर्या सतियों के जिम्मे ही रहता है सो उपदेश रूप दीक्षा तो तीर्थंकर भगवान् देते हैं तथा उसे कार्य रूप में कैसे परिणत करना, यह गुरुणीजी सिखाते हैं। यक्षिणी आर्या ने पद्मावती आर्या को स्वयं प्रव्रजित किया। सारे गूढ सूत्र सिखाये। चार हाथ प्रमाण भूमि देखकर उपयोगपूर्वक चलने रूप ईर्या समिति सिखाई, परिमित निरवद्य भाषा बोलने रूप भाषा समिति सिखाई, गोचरी के दोषों को टालने रूप एषणा समिति का ज्ञान दिया। किसी भी वस्तु को.. यतनापूर्वक उठाने धरने का विवेक सिखाया। परिष्ठापन में भी कितनी विचक्षणता चाहिये, इसका भान कराया। सजगता, सावधानी से प्रमाद शत्रु को जीतने की विधि सिखाई। मन, वचन, काया के योग संयममय ही रहें, इसकी गुप्ति यानी रक्षा कैसे होगी - यह ज्ञान दिया। ____ पद्मावती आर्या ने तीर्थंकर भगवान् के एवं गुरुणी भगवती के सारे निर्देशों को समर्पणता । पूर्वक स्वीकार कर जीवन को संयम से ओतप्रोत कर दिया।
पहले जो फूलों के समान सुकुमार थी वही पद्मावती आज परीषह की शूलों पर चलने को राजी राजी तैयार थी। गृहस्थ अवस्था का मरण हुआ और संयमी जीवन की प्राप्ति हुई। यहां पद्मावती रानी मर गयी और पद्मावती आर्या का जन्म हुआ। 'मैं पहले हजारों पर हुकम चलाती थी, मेरा रूतबा चलना चाहिये, मैं राजरानी हूं' ऐसी भावनाएं उनके मन में भी नहीं आई। सारी रत्नाधिक आर्यायें मेरी पूज्या हैं, मैं तो इनकी चरणरज हूं। विनय और विवेक इन दो गुणों ने पद्मावती आर्या को पांच समिति तीन गुप्ति रूप प्रवचन माता की गोद में बैठी पुत्री बना दिया। क्षमा से लगा कर ब्रह्मचर्य तक के श्रमण धर्मों में वह जी-जान से लग गयी।
तए णं सा पउमावई अज्जा जक्खिणीए अज्जाए अंतिए सामाइयमाइयाई एक्कारस अंगाई अहिज्जइ, अहिजित्ता बहूहिं चउत्थछट्टहमदसमदुवालसेहिं मासद्धमासखमणेहिं विविहेहिं तवोकम्मेहिं अप्पाणं भावेमाणा विहरइ।
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