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अन्तकृतदशा सूत्र
प्रथम अध्ययन - जालिकुमार का वर्णन तत्थ णं बारवईए णयरीए वसुदेवे राया धारिणी देवी। वण्णओ। जहा गोयमो, णवरं जालिकुमारे पण्णासओ दाओ। बारसंगी, सोलस्स वासा परियाओ सेसं जहा गोयमस्स जाव सेत्तुंजे सिद्धे।
कठिन शब्दार्थ - बारसंगी - बारह अंगों का।
भावार्थ -उस द्वारिका नगरी में वसुदेव राजा निवास करते थे। उनकी रानी का नाम धारिणी था। वह अत्यन्त सुकुमाल सुन्दर एवं सुशीला थी। एक समय सुकोमलं शय्या पर सोती हुई उस धारिणी रानी ने सिंह का स्वप्न देखा और स्वप्न का वृत्तान्त अपने पतिदेव को सुनाया। उसके बाद गौतमकुमार के समान एक तेजस्वी पुत्र का जन्म हुआ, जिसका नाम 'जालि कुमार' रखा गया। जब वह युवावस्था को प्राप्त हुआ, तब उसका विवाह पचास कन्याओं के साथ किया गया और उन्हें पचास-पचास करोड़ सोनैया आदि दहेज मिला।
एक समय भगवान् अरिष्टनेमि वहाँ पधारे। उनकी वाणी सुन कर जालिकुमार को वैराग्य उत्पन्न हो गया। माता-पिता की आज्ञा ले कर उन्होंने भगवान् के पास दीक्षा अंगीकार की। उन्होंने बारह अंगों का अध्ययन किया और सोलह वर्ष पर्यन्त दीक्षा-पर्याय पाली। फिर गौतम अनगार के समान इन्होंने भी शत्रुजय पर्वत पर एक मास का संथारा किया और सर्व कर्मों से . मुक्त हो कर सिद्ध हुए।
॥ चौथे वर्ग का प्रथम अध्ययन समाप्त॥ शेष नौ अध्ययन
(४८) एवं मयालि उवयालि पुरिससेणे वारिसेणे य। एवं पजुण्णे वि णवरं कण्हे पिया रुप्पिणी माया। एवं संबे वि णवरं जंबवई माया। एवं अणिरुद्ध वि णवरं पजुण्णे पिया, वेदब्भी माया। एवं सच्चणेमी, णवरं समुद्दविजए पिया, सिवा माया। एवं दढणेमी वि। सव्वे एगगमा।
॥ चउत्थस्स वग्गस्स णिक्खेवओ॥
॥ इइ चउत्थो वग्गो॥
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