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वर्ग ५ अध्ययन १
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मथुरा, संपत्थिए - जाओगे, कोसंबवणकाणणे - कौशाम्ब वन उद्यान में, णग्गोहवरपायवस्स अहे - अत्यंत विशाल वट वृक्ष के नीचे, पुढवीसिलापट्टए - पृथ्वी शिला पट्ट पर, पीयवत्थपच्छाइय- सरीरे - पीताम्बर से शरीर को ढक कर, जराकुमारेणं जरा कुमार के, तिक्खेणं - तीखे ( तीक्ष्ण), कोदंडविप्पमुक्केणं - धनुष से छूटे हुए, इसुणा - तीर से, वामे पाए बायां पैर, विद्धे - विंध जायेगा, तच्चाए तीसरी, वालुयप्पभाए पुढवीए बालुकाप्रभा पृथ्वी में ।
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आगामी भव में तीर्थंकर और मुक्ति
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भावार्थ भगवान् ने कहा 'हे कृष्ण ! सुरा, अग्नि और द्वीपायन ऋषि के कोप के कारण इस द्वारिका नगरी का नाश हो जाने पर और अपने माता-पिता तथा स्वजनों से विहीन हो जाने पर तुम राम -बलदेव के साथ दक्षिण समुद्र के किनारे पाण्डु राजा के पुत्र युधिष्ठिर, भीम, अर्जुन, नकुल और सहदेव इन पांचों पाण्डव के समीप पाण्डु-मथुरा की ओर जाओगे । उधर जाते हुए विश्राम लेने के लिए कौशाम्ब वृक्ष के वन में एक अत्यन्त विशाल वट-वृक्ष के नीचे, पृथ्वी शिलापट्ट पर पीतांबर से अपनी देह को ढ़क कर सो जाओगे। उस समय मृग की आशंका से जराकुमार द्वारा चलाया हुआ तीक्ष्ण बाण तुम्हारे बाएँ पैर में लगेगा। इस प्रकार बाण से बिद्ध. हो कर तुम काल के समय काल कर के वालुकाप्रभा नामक तीसरी पृथ्वी में उत्पन्न होओगे।
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तए णं कण्हे वासुदेवे अरहओ अरिट्ठणेमिस्स अंतिए एयमट्ठे सोच्चा णिसम्म ओहय जाव झियाइ ।
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भावार्थ - भगवान् के मुख से अपने आगामी भव की बात सुन कर कृष्ण - वासुदेव आर्त्तध्यान करने लगे ।
आगामी भव में तीर्थंकर और मुक्ति “कण्हाइ!” अरहा अरिट्ठणेमी कण्हं वासुदेवं एवं वयासी माणं तुम देवाणुप्पिया! ओहय जाव झियाहि । एवं खलु तुमं देवाणुप्पिया! तच्चाओ पुढवीओ उज्जलियाओ अणंतरं उव्वट्टित्ता इहेव जंबूद्दीवे दीवे भारहे वासे आगमिस्साए उस्सप्पिणीए पुंडेसु जणवएसु सयदुवारे णयरे बारसमे अममे णामं अरहा भविस्ससि । तत्थ तुमं बहूई वासाइं केवलपरियायं पाउणित्ता सिज्झिहिसि ।
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