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वर्ग ५ अध्ययन १ - दीक्षा की आज्ञा 來來來來來來來來來來來來來來來來來來來來來來來來來來來來來來來來來來來來來來來來來來來來來來來來來來來來來來字体
सार-संभाल भी की। नव द्वारों से सदा ही अपवित्र रस झराने वाली यह द्वारिका भी शाश्वत रहने वाली नहीं है। यह भी नष्ट होगी। अग्नि की भेंट चढ़ेगी। इस देह-द्वारिका का भी विनाश होगा। हमें गंभीरता पूर्वक विचार कर लेना चाहिए कि द्वारिका नाश के पहले हमें क्या-क्या करना है?
• पद्मावती को वैराग्य
___(५६) तए णं सा पउमावई देवी अरहओ अरिट्टणेमिस्स अंतिए धम्मं सोच्चा णिसम्म हट्टतुट्ठ जाव हियया अरहं अरिट्ठणेमिं वंदइ णमंसइ, वंदित्ता णमंसित्ता एवं वयासी
भावार्थ - भगवान् अरिष्टनेमि से धर्म सुन कर और हृदय में धारण कर के पद्मावती रानी हृष्ट-तुष्ट हुई, यावत् भावपूर्ण हृदय से भगवान् को नमस्कार कर इस प्रकार बोली - - सद्दहामि णं भंते! णिग्गंथं पावयणं से जहेयं तुन्भे वयह। जंणवरं देवाणुप्पिया! कण्हं वासुदेवं आपुच्छामि, तए णं अहं देवाणुप्पियाणं अंतिए मुण्डा जाव पव्वयामि। अहासुहं देवाणुप्पिया! मा पडिबंधं करेह।
कठिन शब्दार्थ - सहहामि - श्रद्धा करती हूं, णिग्गंथं पावयणं - निग्रंथ प्रवचन को, जहेयं - जैसा, आपुच्छामि - पूछ कर, मा पडिबंधं करेह - प्रमाद (विलम्ब) मत करो।
भावार्थ - हे भगवन्! आपका उपदेश यथार्थ है। जैसा आप कहते हैं, वह तत्त्व वैसा ही है। निर्ग्रन्थ-प्रवचन पर मेरी श्रद्धा है। मैं कृष्ण-वासुदेव से पूछ कर आपके समीप दीक्षा लेना चाहती हूँ।' भगवान् ने कहा - 'हे देवानुप्रिये! जिस प्रकार तुम्हारी आत्मा को सुख हो, वैसा करो। धर्म-कार्य में प्रमाद मत करो।'
दीक्षा की आज्ञा तए णं सा पउमावई देवी धम्मियं जाणप्पवरं दुरूहइ, दुरूहित्ता जेणेव बारवई णयरी जेणेव सए गिहे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता धम्मियाओ जाणप्पवराओ पच्चोरुहइ, पच्चोरुहित्ता जेणेव कण्हे वासुदेवे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छिंत्ता
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